शà¥à¤°à¥€ राम (à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• कहानी)
बहà¥à¤¤ समय पहले की बात है हिनà¥à¤¦à¥‚ पंचांग के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° लगà¤à¤— 9 लाख वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ तà¥à¤°à¥‡à¤¤à¤¾à¤¯à¥à¤— में à¤à¤• अतà¥à¤¯à¤‚त पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ªà¥€ सूरà¥à¤¯à¤µà¤‚शी राजा दशरथ हà¥à¤† करते थे। इनकी राजधानी का नाम अयोधà¥à¤¯à¤¾ था। राजा दशरथ बहà¥à¤¤ ही नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤ªà¥à¤°à¤¿à¤¯ और सदाचारी राजा थे। उसके शासन में सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤œà¤¾ सà¥à¤–पूरà¥à¤µà¤• अपना जीवन वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ करती थी। महान पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ªà¥€ सतà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦à¥€ राजा हरिशà¥à¤šà¤‚दà¥à¤° और यशसà¥à¤µà¥€ राजा à¤à¤¾à¤—ीरथी राजा दशरथ के पूरà¥à¤µà¤œà¥‹à¤‚ में से à¤à¤• थे। राजा दशरथ अपने पूरà¥à¤µà¤œà¥‹à¤‚ की à¤à¤¾à¤à¤¤à¤¿ धारà¥à¤®à¤¿à¤• कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• संलगà¥à¤¨ थे। राजा दशरथ के कोई संतान नहीं थी। जिससे वह अकà¥à¤¸à¤° उदास रहता था। राजा दशरथ की तीन रानियां थीं। पहली रानी का नाम कौशलà¥à¤¯à¤¾, दूसरी रानी का नाम सà¥à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤°à¤¾ और तीसरी रानी का नाम कैकेयी था, राजा दशरथ à¤à¤• महान धनà¥à¤°à¥à¤§à¤° थे। वह गाली गलौच में माहिर था। वह राजा दशरथ के मन में हमेशा शबà¥à¤¦ की धà¥à¤µà¤¨à¤¿ सà¥à¤¨à¤•à¤° लकà¥à¤·à¥à¤¯ को बिना देखे ही à¤à¥‡à¤¦ सकता था। इसी चिंता में डूबे राजगà¥à¤°à¥ वशिषà¥à¤ ने à¤à¤• दिन दशरथ को पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ यजà¥à¤ž करने का सà¥à¤à¤¾à¤µ दिया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शà¥à¤°à¥ƒà¤‚गी ऋषि की देखरेख में यह यजà¥à¤ž किया। इस यजà¥à¤ž में खूब दान-पà¥à¤£à¥à¤¯ किया गया। इस यजà¥à¤ž के बाद पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ के रूप में खीर तीनों रानियों को खिलाई गई। कई महीनों के बाद तीनों रानियों के चार पà¥à¤¤à¥à¤° हà¥à¤à¥¤ सबसे बड़ी रानी कौशलà¥à¤¯à¤¾ की राम, कैकेयी की à¤à¤°à¤¤ और सà¥à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤°à¤¾ की लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ और शतà¥à¤°à¥à¤§à¤¨ थीं। चारों à¤à¤¾à¤ˆ बड़े ही रूपवान और तेजसà¥à¤µà¥€ थे। महाराज दशरथ अपने चारों पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को देखकर बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤à¥¤ संतान का सà¥à¤– मिलने पर राजा दशरथ की खà¥à¤¶à¥€ का ठिकाना नहीं रहा। कà¥à¤› समय बाद चारों à¤à¤¾à¤ˆ राजगà¥à¤°à¥ वशिषà¥à¤ के साथ शिकà¥à¤·à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने के लिठवन में चले गà¤, वशिषà¥à¤ बहà¥à¤¤ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ गà¥à¤°à¥ थे। उस समय ऋषि वशिषà¥à¤ का बहà¥à¤¤ समà¥à¤®à¤¾à¤¨ था। सà¤à¥€ à¤à¤¾à¤ˆ बड़े विलकà¥à¤·à¤£ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾ के धनी थे। जबकि लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी थोड़े मिलनसार थे। शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® शांत और गंà¤à¥€à¤° सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ के थे। चारों à¤à¤¾à¤ˆ à¤à¥€ पढ़ने-लिखने में बहà¥à¤¤ होशियार थे। जलà¥à¤¦ ही उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने तीर चलाना आदि यà¥à¤¦à¥à¤§ कला सीख ली। अयोधà¥à¤¯à¤¾ के लोग उनके रूप और गà¥à¤£à¥‹à¤‚ से मà¥à¤—à¥à¤§ थे, राजा दशरथ कà¤à¥€ à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपनी आà¤à¤–ों से दूर नहीं रखना चाहते थे। à¤à¤• दिन à¤à¤• बहà¥à¤¤ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ और विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ महरà¥à¤·à¤¿ विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° राजा दशरथ के पास आà¤à¥¤ वह अपने समय के à¤à¤• महान और तपसà¥à¤µà¥€ संत थे। उसके यजà¥à¤ž में अनेक पापी और अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥€ विघà¥à¤¨ डालते थे। जब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने राम और उनके à¤à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ के बारे में सà¥à¤¨à¤¾ तो वे दशरथ के पास गà¤à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने दशरथ से पापियों और अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को मारने और राम और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ को यजà¥à¤ž की रकà¥à¤·à¤¾ करने के लिठकहा। राजा दशरथ ने हाथ जोड़कर मà¥à¤¨à¤¿ विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° से कहा- 'हे मà¥à¤¨à¤¿! राम और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ दोनों अà¤à¥€ à¤à¥€ बचà¥à¤šà¥‡ हैं। इतने सारे पापी और अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥€ लोगों के साथ इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ यà¥à¤¦à¥à¤§ में मत ले जाओ। मैं अपनी पूरी सेना और सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को आगे बढ़ाऊंगा और उनके साथ यà¥à¤¦à¥à¤§ करूंगा और आपके बलिदान की रकà¥à¤·à¤¾ à¤à¥€ करूंगा। राजा दशरथ पहले तो अपने पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को साथ नहीं à¤à¥‡à¤œà¤¨à¤¾ चाहते थे, फिर राजगà¥à¤°à¥ वशिषà¥à¤ के समà¤à¤¾à¤¨à¥‡ पर वे à¤à¥‡à¤œà¤¨à¥‡ को तैयार हो गà¤à¥¤ राम और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ दोनों ऋषि विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° के साथ चले गà¤à¥¤ रासà¥à¤¤à¥‡ में ऋषि ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दो मंतà¥à¤° सिखाà¤à¥¤ इन मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ को सीखने के बाद दोनों राजकà¥à¤®à¤¾à¤° और à¤à¥€ शकà¥à¤¤à¤¿à¤¶à¤¾à¤²à¥€ हो गà¤à¥¤ ऋषि के आशà¥à¤°à¤® में जाते समय उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ताड़का नाम की पापी और अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥€ सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ का वध कर दिया। वहाठपहà¥à¤à¤šà¤•à¤° यजà¥à¤ž की रकà¥à¤·à¤¾ करते हà¥à¤ उनके à¤à¤• पà¥à¤¤à¥à¤° मारीच और दूसरे पà¥à¤¤à¥à¤° सà¥à¤¬à¤¾à¤¹à¥ को à¤à¥€ बाण से मार डाला। अब विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° का यजà¥à¤ž बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥€ तरह और बहà¥à¤¤ शांति से समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤†à¥¤ इसके बाद महरà¥à¤·à¤¿ विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° दोनों राजकà¥à¤®à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ राम और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ को लेकर मिथिलापà¥à¤°à¥€ पहà¥à¤‚चे। मिथिला के राजा जनक बड़े विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ और ऋषि थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ सीता के सà¥à¤µà¤¯à¤‚वर की रचना की। दूर-दूर से राजा- महाराज सà¥à¤µà¤¯à¤‚वर में बड़ी धूम-धाम आ रही थी। जब विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° वहां पहà¥à¤‚चे तो राजा ने उनका जोरदार सà¥à¤µà¤¾à¤—त किया। राजा जनक के पास धनà¥à¤· था। यह धनà¥à¤· शिव का था, इसी धनà¥à¤· से उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने तà¥à¤°à¤¿à¤ªà¤¾à¤¸à¥à¤° का वध किया था। सीताजी के अतिरिकà¥à¤¤ कोई उसे उठा न सका। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह बहà¥à¤¤ à¤à¤¾à¤°à¥€ और कठोर था। राजा जनक ने वचन दिया था कि जो कोई इस धनà¥à¤· को उठाà¤à¤—ा, वह इसकी डोरी बांध देगा। उसी से सीताजी का विवाह होगा। माता सीता जी के विवाह हेतॠसà¥à¤µà¤¯à¤‚वर का आयोजन किया। पूरे आरà¥à¤¯à¤µà¥à¤°à¤¤ के बड़े वीर योदà¥à¤§à¤¾ कहलाà¤à¥¤ उस आयोजन में रावण à¤à¥€ शामिल हà¥à¤† था। सà¤à¥€ राजाओं ने बहà¥à¤¤ कोशिश की, लेकिन कोई à¤à¥€ उसे उठाकर रसà¥à¤¸à¥€ नहीं बाà¤à¤§ सका। सà¤à¥€ राजाओं ने हार मान ली थी। राजा जनक को चिंता होने लगी कि अब मैं अपनी पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के योगà¥à¤¯ वर कहां से खोजूं। तब महरà¥à¤·à¤¿ विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° ने राम को धनà¥à¤· उठाने और उस पर डोरी डालने का आदेश दिया। गà¥à¤°à¥ की आजà¥à¤žà¤¾ पाकर राम धनà¥à¤· के पास पहà¥à¤‚चे और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सहज ही धनà¥à¤· को उठा लिया और उसे तोड़ने लगे। धनà¥à¤· बांधते समय शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® के हाथ से वह धनà¥à¤· टूट गया। पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ धनà¥à¤· शिव का था, उस समय शिव के परम à¤à¤•à¥à¤¤ परशà¥à¤°à¤¾à¤® जी à¤à¥€ थे। धनà¥à¤· टूटने की आवाज सà¥à¤¨à¤•à¤° परशà¥à¤°à¤¾à¤® वहां पहà¥à¤‚चे। उसे बहà¥à¤¤ गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ आया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इस धनà¥à¤· को तोड़ने वाले की खोज शà¥à¤°à¥‚ की। परशà¥à¤°à¤¾à¤® के कà¥à¤°à¥‹à¤§ को देखकर पूरी सà¤à¤¾ में सनà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¤¾ पसर गया। डर के मारे कोई कà¥à¤› नहीं बोल रहा था। लेकिन लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी डरे नहीं, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने परशà¥à¤°à¤¾à¤® जी से विवाद करना शà¥à¤°à¥‚ कर दिया, जिसके कारण परशà¥à¤°à¤¾à¤® का कà¥à¤°à¥‹à¤§ बढ़ने लगा। लेकिन शà¥à¤°à¥€ राम ने विनमà¥à¤°à¤¤à¤¾ से हाथ जोड़कर परशà¥à¤°à¤¾à¤® जी से गलती से धनà¥à¤· तोड़ने का अनà¥à¤°à¥‹à¤§ किया और उनसे कà¥à¤·à¤®à¤¾ मांगी। राम के सरल शांत सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ को देखकर परशà¥à¤°à¤¾à¤® का कà¥à¤°à¥‹à¤§ शांत हà¥à¤† और वे वहां से चले गà¤à¥¤ उनके जाने के तà¥à¤°à¤‚त बाद, बैठक में सà¤à¥€ ने राहत की सांस ली। परशà¥à¤°à¤¾à¤® के जाने के बाद राजा जनक महरà¥à¤·à¤¿ विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° के पास गठऔर उनसे पूछा- 'हे मà¥à¤¨à¤¿: ये दो यà¥à¤µà¤• कौन हैं, इस रूप के राजा, कृपया उनके बारे में बताà¤à¤‚।' ऋषि विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° ने राजा जनक से कहा- ये दोनों à¤à¤¾à¤ˆ राम और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£, ये दोनों अयोधà¥à¤¯à¤¾ के राजा दशरथ के पà¥à¤¤à¥à¤° हैं। राजा दशरथ के चार पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में, राम सबसे बड़े हैं जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने धनà¥à¤· तोड़ा। ऋषि दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ शà¥à¤°à¥€ राम का परिचय सà¥à¤¨à¤•à¤° उनकी खà¥à¤¶à¥€ का ठिकाना नहीं रहा। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• राजा दशरथ के चारों पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के साथ सीता सहित अपनी चार पà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का विवाह करने का निशà¥à¤šà¤¯ किया।राजा जनक ने महरà¥à¤·à¤¿ से चारों के विवाह का अनà¥à¤°à¥‹à¤§ किया, महरà¥à¤·à¤¿ ने सहरà¥à¤· सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° कर लिया।ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ राजा जनक के दरबार में उतà¥à¤¸à¤µ शà¥à¤°à¥‚ हो गया, मिठाइयां बांटी गईं, ढोल नगाड़े बजाठगà¤à¥¤ बजने लगा। ऋषि ने यह शà¥à¤ संदेश अयोधà¥à¤¯à¤¾ à¤à¥‡à¤œà¤¾à¥¤ अयोधà¥à¤¯à¤¾ में, राजा दशरथ ने समाचार सà¥à¤¨à¤•à¤°, पूरी अयोधà¥à¤¯à¤¾ को सजाने और लोगों को उपहार वितरित करने का आदेश दिया। पूरी अयोधà¥à¤¯à¤¾ अपने राजकà¥à¤®à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ के विवाह का जशà¥à¤¨ मनाने लगी। राजा दशरथ अपने पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ की बारात की तैयारी करने लगे। कई हजार हाथियों को सजाया गया, सैकड़ों रथ बनाठगà¤à¥¤ शोà¤à¤¾à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¾ में समूची अयोधà¥à¤¯à¤¾ नगरी मिथिलापà¥à¤° पहà¥à¤‚ची। मिथिलापà¥à¤° नरेश जनक की बारात की तैयारियों में कोई कमी नहीं आई। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने आगे बढ़कर बारात का सà¥à¤µà¤¾à¤—त किया, राजा दशरथ को गले से लगाया और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बहà¥à¤¤ समà¥à¤®à¤¾à¤¨ दिया। शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® के विवाह में अयोधà¥à¤¯à¤¾ के सà¤à¥€ लोग नाच-गा रहे थे। पूरे आरà¥à¤¯à¤µà¥à¤°à¤¤ में उतà¥à¤¸à¤µ का माहौल था। चारों à¤à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ की शादी धूमधाम से हà¥à¤ˆà¥¤ शà¥à¤°à¥€ रामचनà¥à¤¦à¥à¤° जी का विवाह माता सीता से, लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी का विवाह माता उरà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¾ से, à¤à¤°à¤¤ जी का विवाह माता मैंडी से तथा शतà¥à¤°à¥à¤§à¤¨ जी का विवाह माता शà¥à¤°à¥à¤¤à¤¿à¤•à¥€à¤°à¥à¤¤à¤¿ से हà¥à¤†à¥¤ विवाह के बाद राजा दशरथ सबके साथ वापस अयोधà¥à¤¯à¤¾ आ गà¤à¥¤ राजा अब सà¥à¤–पूरà¥à¤µà¤• शासन करने लगा। समय बीतता गया और राजा दशरथ अब बूढ़े होने लगे थे। वे रामचनà¥à¤¦à¥à¤° जी को राजकारà¥à¤¯ देकर सà¥à¤µà¤¯à¤‚ तपसà¥à¤¯à¤¾ करना चाहते थे। गà¥à¤°à¥ वशिषà¥à¤ के कहने पर शà¥à¤°à¥€ राम के राजà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• के लिठà¤à¤• शà¥à¤ दिन निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ किया गया। जब सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤œà¤¾ को यह समाचार मिला कि शà¥à¤°à¥€ राम उनके राजा बनने वाले हैं तो सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤œà¤¾ की खà¥à¤¶à¥€ का ठिकाना नहीं रहा। खूब खà¥à¤¶à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ मनाई जा रही थी। हर तरफ खà¥à¤¶à¥€ का माहौल था। सबके चेहरे पर हंसी बिखर गई, सब महल सजाने और राजà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• की तैयारियों में जà¥à¤Ÿ गà¤à¥¤ इन तमाम चेहरों में à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ चेहरा à¤à¥€ था जिस पर दà¥à¤– और बदले की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ साफ नजर आ रही थी। वह चेहरा कोई और नहीं बलà¥à¤•à¤¿ रानी कैकेयी की दासी मंथरा का था। मंथरा को शà¥à¤°à¥€ राम जी का राजा होना पसंद नहीं था, वह à¤à¤°à¤¤ जी को राजा के रूप में देखना चाहती थीं। वह उदास होकर रानी कैकेयी के पास चली गईं। महारानी कैकेयी शà¥à¤°à¥€ राम के राजà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• के निरà¥à¤£à¤¯ से बहà¥à¤¤ खà¥à¤¶ थीं और उतà¥à¤¸à¤µ की तैयारियों का जायजा ले रही थीं। मंथरा का लटका हà¥à¤† चेहरा देखकर पहले तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ आया लेकिन मंथरा ने बड़ी चतà¥à¤°à¤¾à¤ˆ से काम लिया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि मैं अपने लिठथोड़ा दà¥à¤–ी हूं, आपके पà¥à¤¤à¥à¤° राजकà¥à¤®à¤¾à¤° à¤à¤°à¤¤ की चिंता के लिठदà¥à¤–ी हूं। à¤à¤°à¤¤ का नाम सà¥à¤¨à¤•à¤° रानी ने कहा, चिंता की कà¥à¤¯à¤¾ बात है, साफ-साफ बोलो। मंथरा ने रानी कैके को à¤à¤•à¤¾à¤‚त में ले लिया और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कई अपरंपरागत चीजें सिखाईं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने चालाकी से कैकेय के मन में पà¥à¤¤à¥à¤° के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ आसकà¥à¤¤à¤¿ जगा दी और राजा दशरथ को विवाह से पहले किनà¥à¤¹à¥€à¤‚ दो मांगों को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करने की याद दिलाते हà¥à¤ à¤à¤°à¤¤ को राजी करने के लिठराजी कर लिया। राजा दशरथ और रानी कैकेयी के विवाह से पहले à¤à¤• यà¥à¤¦à¥à¤§ के दौरान कैकेयी ने राजा दशरथ की जान बचाई थी। राजकà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ कैकेयी सà¥à¤‚दर थी, राजा दशरथ ने उनसे विवाह करने का अनà¥à¤°à¥‹à¤§ किया, रानी कैकेयी ने दो वचन मांगे, राजा दशरथ मान गठऔर दोनों का विवाह हो गया। मंथरा की बात मानकर रानी ने अपना मà¥à¤– उदास कर लिया, केश खोल दिये और रोती हà¥à¤ˆ कोपà¤à¤µà¤¨ में सो गयी। यह बात राजा दशरथ तक पहà¥à¤‚ची, राजा तà¥à¤°à¤‚त रानी के महल पहà¥à¤‚चे। à¤à¤¸à¥€ दशा देखकर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बहà¥à¤¤ दà¥:ख हà¥à¤†à¥¤ वह कैकेयी से बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¥‡à¤® करता था उसने पूछा। "हे केक! उदास कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ हो, सब देखो तà¥à¤® कितने खà¥à¤¶ हो आखिर, बताओ तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤¯à¤¾ चाहिà¤à¥¤ मैं दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को खोजकर साड़ी लाऊंगा, तà¥à¤® दà¥à¤–ी मत हो, मà¥à¤à¥‡ बताओ कि तà¥à¤® कà¥à¤¯à¤¾ चाहते हो? रानी कैकेयी उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ राजा दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ विवाह से पहले दिठगठदो वचनों की याद दिलाई और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पहली मांग के रूप में शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® से 12 वरà¥à¤· का वनवास और दूसरी मांग में à¤à¤°à¤¤ को राजा बनाने की मांग की।रानी कैकेयी की मांग सà¥à¤¨à¤•à¤° राजा दशरथ का दिल बैठगया। वह दà¥:ख से वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤² होने लगा, किसी तरह अपने आप को संà¤à¤¾à¤²à¤¤à¥‡ हà¥à¤ उसने कैकेयी से कहा- हे कैकेयी, तà¥à¤® इतनी निरà¥à¤¦à¤¯à¥€ कैसे हो सकती हो? मैं उसके बिना à¤à¤• पल à¤à¥€ नहीं रह सकता ।राजा दशरथ ने कैकेयी को बहà¥à¤¤ मनाने की कोशिश की लेकिन कैकेयी अपनी मांग पर अड़ी रही। 'रघà¥à¤•à¥à¤² की रीत सदा चली, पर शबà¥à¤¦ न जाय'। शà¥à¤°à¥€ राम ने कà¤à¥€ कà¥à¤² की मरà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ का उलà¥à¤²à¤‚घन नहीं किया, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपने पिता के वचन का पता चल गया। इसके साथ ही माता कैकेयी की दो मांगें à¤à¥€ बताई गईं। उसने शीघà¥à¤° ही निशà¥à¤šà¤¯ कर लिया कि उसके कारण उसके पिता का वचन नहीं टूट सकता और उसने वन जाने का निशà¥à¤šà¤¯ किया। शà¥à¤°à¥€ राम अपने महल में माता कैकेयी के पास गठऔर हाथ जोड़कर विनती की। हे माता! आप बिलà¥à¤•à¥à¤² दà¥à¤–ी न हों, मैं शीघà¥à¤° ही वनवास को पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ करूंगा। यदि मेरा अनà¥à¤œ à¤à¤°à¤¤ राजा हà¥à¤† तो मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ होगी, तà¥à¤® अपना शोक तà¥à¤¯à¤¾à¤— दो। यह कहकर शà¥à¤°à¥€ रामचंदà¥à¤° माता सीता और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी सहित 12 वरà¥à¤· के वनवास पर चले गà¤à¥¤ राम के विरह में राजा दशरथ फूट-फूट कर रो रहे थे। उनका मन बहà¥à¤¤ उदास हो गया। राजा दशरथ के साथ पूरी अयोधà¥à¤¯à¤¾ नगरी में मातम छा गया। अपने पà¥à¤°à¤¿à¤¯ राजकà¥à¤®à¤¾à¤° और उसकी पतà¥à¤¨à¥€ के वनवास की बात सà¥à¤¨à¤•à¤° पà¥à¤°à¤œà¤¾ à¤à¥€ रोने लगी, मानो सारी अयोधà¥à¤¯à¤¾ पर विपदा आ पड़ी हो, पकà¥à¤·à¥€ चहचहाने लगे हों और फूल खिलना बंद हो गठहों। अयोधà¥à¤¯à¤¾ के लोग à¤à¥€ वनवास के बाद जाने लगे, पà¥à¤°à¤¿à¤¯ राजकà¥à¤®à¤¾à¤°, शà¥à¤°à¥€ राम ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बहà¥à¤¤ समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ लेकिन किसी ने नहीं सà¥à¤¨à¤¾, तब राम ने सबको अकेला छोड़कर लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ और सीता के साथ सरयू नदी पार की, à¤à¤°à¤¤ जी अयोधà¥à¤¯à¤¾ में नहीं थे जब वे जंगल में गया था, वह अपने नाना के घर गया हà¥à¤† था। इधर दशरथ महाराज की हालत बिगड़ती जा रही थी, बेटे के मोह में रो-रो कर उनके पà¥à¤°à¤¾à¤£ उखड़ गà¤à¥¤ जब राजा दशरथ की मृतà¥à¤¯à¥ हà¥à¤ˆ तो उनके साथ कोई पà¥à¤¤à¥à¤° नहीं था। बाद में शà¥à¤°à¤µà¤£ कà¥à¤®à¤¾à¤° के माता-पिता दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ राजा दशरथ को दिया गया शà¥à¤°à¤¾à¤ª फलीà¤à¥‚त हà¥à¤†à¥¤ रामचंदà¥à¤° जी के जाने के बाद नाना के घर से à¤à¤°à¤¤ जी को बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ गया। तब तक वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• विधि से राजा दशरथ के शरीर को किसी तेल में सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ रख दिया गया। à¤à¤°à¤¤ जी अयोधà¥à¤¯à¤¾ लौट आà¤à¥¤ जब उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सारा किसà¥à¤¸à¤¾ पता चला तो वे बहà¥à¤¤ दà¥à¤–ी हà¥à¤ और अपनी माता कैकेयी को à¤à¥€ बहà¥à¤¤ बà¥à¤°à¤¾-à¤à¤²à¤¾ कहा। राजा दशरथ की मृतà¥à¤¯à¥ के बाद उनकी माà¤à¤— पर रानी को à¤à¥€ बहà¥à¤¤ पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¤¾à¤ª हà¥à¤†à¥¤ à¤à¤°à¤¤ जी ने शीघà¥à¤° ही अपने पिता दशरथ का विधिवत दाह संसà¥à¤•à¤¾à¤° किया। इसके बाद à¤à¤°à¤¤ जी रामचंदà¥à¤° जी को वापस लाने के लिठवन में चले गà¤à¥¤ à¤à¤°à¤¤ जी अयोधà¥à¤¯à¤¾ की सेना को à¤à¥€ अपने साथ वन ले गठथे, जिससे लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी के मन में शंका उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ˆ कि वे à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ शà¥à¤°à¥€ से यà¥à¤¦à¥à¤§ करने आ रहे हैं, ताकि वे शà¥à¤°à¥€ राम का वध कर अयोधà¥à¤¯à¤¾ का राजà¥à¤¯ सदा के लिठले लें, और बने रहें जीवन के लिठराजा। लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी अपना धनà¥à¤· बाण लेकर à¤à¤¾à¤°à¤¤ से यà¥à¤¦à¥à¤§ करने की तैयारी करने लगे और शà¥à¤°à¥€ राम से à¤à¥€ तैयारी करने को कहने लगे। लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी बहà¥à¤¤ कà¥à¤°à¥‹à¤§à¤¿à¤¤ हà¥à¤, वे à¤à¤°à¤¤ को मारने का पà¥à¤°à¤£ लेने जा रहे थे, तà¤à¥€ शà¥à¤°à¥€ राम ने लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी को समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ और कहा कि à¤à¤°à¤¤ à¤à¤¸à¤¾ नहीं है, यदि मैं अà¤à¥€ इशारा कर दूं तो वह तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ पूरा राजà¥à¤¯ दे सकते हैं। फिर उसने अपना वादा टाल दिया। शà¥à¤°à¥€ राम सही थे, à¤à¤°à¤¤ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ यà¥à¤¦à¥à¤§ न करने के लिठवापस बà¥à¤²à¤¾à¤¨à¥‡ आठथे, लेकिन शà¥à¤°à¥€ राम ने वापस जाने से मना कर दिया। à¤à¤°à¤¤ जी के बहà¥à¤¤ आगà¥à¤°à¤¹ करने पर à¤à¥€ राम जी नहीं माने। अंत में à¤à¤°à¤¤ अपनी चरण पादà¥à¤•à¤¾à¤“ं के साथ वापस अयोधà¥à¤¯à¤¾ आ गठऔर इन पादà¥à¤•à¤¾à¤“ं को सिंहासन पर बिठाकर राजà¥à¤¯ चलाने लगे। कà¥à¤› समय बाद शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ और सीता सहित दंडकारणà¥à¤¯ नामक वन में पहà¥à¤‚चे। वहाठमहापराकà¥à¤°à¤®à¥€ रावण शूरà¥à¤ªà¤£à¤–ा शà¥à¤°à¥€ राम के रूप पर मोहित हो गई। वह शà¥à¤°à¥€ राम से विवाह करना चाहती थी। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® के सामने उनके विवाह का पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤µ रखा। शà¥à¤°à¥€ राम बोले- 'मेरा विवाह हो गया है, देखो मेरा छोटा à¤à¤¾à¤ˆ लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ है, वह à¤à¥€ अति सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° है, तà¥à¤® उसके पास कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं जाते। à¤à¤¸à¤¾ कहकर शà¥à¤°à¥€ राम ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी के पास à¤à¥‡à¤œ दिया। वह लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी के पास गई। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सरà¥à¤ªà¤¨à¤–ा पर बहà¥à¤¤ गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ आया, विवाह करना तो दूर लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी ने उनकी नाक काट दी। उसका चेहरा बहà¥à¤¤ कà¥à¤°à¥‚प हो गया। उसकी पूरी नाक कटी हà¥à¤ˆ थी। बड़ी हिमà¥à¤®à¤¤ करके वह अपने à¤à¤¾à¤ˆ के पास गई और सारी बात कह सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆà¥¤ शूरà¥à¤ªà¤£à¤–ा ने सीता के सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ का वरà¥à¤£à¤¨ करके रावण के हृदय में मोह जगा दिया। रावण बलपूरà¥à¤µà¤• सà¥à¤‚दरी को पाने की तैयारी करने लगा। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने राम और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ के ठिकाने का पता लगाया। उसके पास मारीच नाम का à¤à¤• पालतू हिरण था। जो अनà¥à¤¯ मृगों से अधिक सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° था, उस मृग को अपने आशà¥à¤°à¤® के पास छोड़ आया। वह मृग शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® के आशà¥à¤°à¤® में इधर-उधर घूमने लगा। सोने के रंग के मृग को देखकर सीता जी मोहित हो गईं और शà¥à¤°à¥€ राम से उस सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मृग को पकड़ने का आगà¥à¤°à¤¹ करने लगीं। रामजी माता सीता को मना नहीं कर सके। शà¥à¤°à¥€ राम ने माता सीता को à¤à¥‹à¤ªà¤¡à¤¼à¥€ के अंदर रहने और सतरà¥à¤• रहने को कहा और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ के साथ हिरण का पीछा किया और उसकी खोज में निकल पड़े। अंत में कà¥à¤à¤µà¤° मास के दशहरा के दिन शà¥à¤°à¥€ रामचनà¥à¤¦à¥à¤°à¤œà¥€ ने रावण का वध किया, सीताजी लौट आयीं। सीता से मिलकर शà¥à¤°à¥€ राम अतà¥à¤¯à¤‚त पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤, उनके साथ-साथ पूरी सेना उतà¥à¤¸à¤µ मनाने लगी। अब चौदह वरà¥à¤· समापà¥à¤¤ होने को थे। रामचंदà¥à¤° जी ने लंका का राजà¥à¤¯ विà¤à¥€à¤·à¤£ को दे दिया, इसके बाद वे अयोधà¥à¤¯à¤¾ लौट आà¤à¥¤ उनके साथ हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी, सà¥à¤—à¥à¤°à¥€à¤µ जी आदि à¤à¥€ आठथे। आज à¤à¥€ यह दिन को दीपावली परà¥à¤µ के रूप में मनाया जाता है। अब à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® का राजà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• पूरे धूमधाम से हà¥à¤†à¥¤ à¤à¤• बार फिर से पूरे à¤à¤¾à¤°à¤¤ में शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® के राजà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• की तैयारियां जोरों पर होने लगीं। हर कोई अपने चहेते राजकà¥à¤®à¤¾à¤° को जलà¥à¤¦ ही राजा बनते देखना चाहता था। वह अपने अधूरे सपने को पूरा करना चाहते थे। आखिर वह शà¥à¤ घड़ी आ ही गई और शà¥à¤°à¥€ राम का à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• राजà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• हà¥à¤†, शà¥à¤°à¥€ राम माता सीता के साथ सिंहासन पर विराजमान हà¥à¤ और बड़ी कà¥à¤¶à¤²à¤¤à¤¾ से अपना धरà¥à¤® निà¤à¤¾à¤¤à¥‡ हà¥à¤ पà¥à¤°à¤œà¤¾ की सेवा करने लगे। उनके राजà¥à¤¯ में मनà¥à¤·à¥à¤¯ ही मनà¥à¤·à¥à¤¯ है, सà¤à¥€ जीव-जंतà¥, पशà¥-पकà¥à¤·à¥€, पेड़-पौधे सà¤à¥€ आनंदित थे। सब सà¥à¤– से रहते थे। राम चरित मानस में तà¥à¤²à¤¸à¥€ दास महाराज जी राम राजà¥à¤¯ का वरà¥à¤£à¤¨ करते हà¥à¤ कहते हैं कि राम राजà¥à¤¯ में सूरà¥à¤¯ उतनी ही गरà¥à¤®à¥€ देता था जितनी शरीर सहन कर सकता था, वरà¥à¤·à¤¾ केवल उतनी ही होती थी जितनी फसल और पशॠसहन कर सकता है। पेड़ फलों से लदे थे। तरह-तरह के फूल तरह-तरह की सà¥à¤—ंध बिखेर रहे थे। à¤à¤• दिन शà¥à¤°à¥€ राम ने अपनी पà¥à¤°à¤œà¤¾ के हित को बारीकी से समà¤à¤¨à¥‡ के लिठजनता के बीच जाने का निशà¥à¤šà¤¯ किया। कोई उसे पहचान न पाठइसलिठउसने अपना à¤à¥‡à¤· बदल लिया। शà¥à¤°à¥€ राम नगर में घूमते हà¥à¤ à¤à¤• पेड़ के नीचे जहां पहले से कà¥à¤› लोग मौजूद थे, उनके पास रà¥à¤• गà¤à¥¤ वहाठà¤à¤• धोबी की बातों से शà¥à¤°à¥€ राम बहà¥à¤¤ दà¥à¤–ी हà¥à¤ और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ फिर से कठोर निरà¥à¤£à¤¯ लेने पर विवश कर दिया। उस धोबी ने माता सीता से पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ किया, जिससे शà¥à¤°à¥€ राम दà¥à¤–ी हो गà¤à¥¤ वह वापस महल में आया और अपनी पà¥à¤°à¤œà¤¾ की संतà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ के लिठमाता सीता को वालà¥à¤®à¥€à¤•à¤¿ के आशà¥à¤°à¤® à¤à¥‡à¤œà¤¨à¥‡ का कठोर निरà¥à¤£à¤¯ लिया। लोक लाज के कारण माता सीता जी को वालà¥à¤®à¥€à¤•à¤¿ आशà¥à¤°à¤® में रहना पड़ा। इसी आशà¥à¤°à¤® में माता सीता ने दो तेजसà¥à¤µà¥€ पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को जनà¥à¤® दिया, जिनके नाम लव और कà¥à¤¶ थे। ये दोनों ही महरà¥à¤·à¤¿ वालà¥à¤®à¥€à¤•à¤¿ के शिषà¥à¤¯ थे और वेदों के जà¥à¤žà¤¾à¤¨ और यà¥à¤¦à¥à¤§ में पारंगत और वीर बन गठथे। रामचंदà¥à¤° ने अशà¥à¤µà¤®à¥‡à¤§ यजà¥à¤ž किया। इस समय पà¥à¤°à¤œà¤¾ की माà¤à¤— पर सीताजी को बार-बार बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ गया, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अगà¥à¤¨à¤¿ परीकà¥à¤·à¤¾ देने के लिठकहा गया, इससे माता सीता फिर बहà¥à¤¤ दà¥à¤–ी हà¥à¤ˆà¤‚ और अपनी पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ की शपथ लेकर मन ही मन à¤à¤—वान से याचना कीं धरती फटने और à¤à¥‚कमà¥à¤ª आने की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि धरती फट जाने से माता सीता परम पवितà¥à¤° सिदà¥à¤§ हो गईं और माता सीता हमेशा-हमेशा के लिठधरती में समा गईं। पà¥à¤°à¤à¥ शà¥à¤°à¥€ राम बहà¥à¤¤ दà¥à¤–ी हà¥à¤, वे हमेशा के लिठअकेले हो गà¤, कà¥à¤› समय बाद शà¥à¤°à¥€ राम ने à¤à¥€ सरयू में अपना शरीर तà¥à¤¯à¤¾à¤— दिया और जल समाधि ले ली। लव और कà¥à¤¶ बहà¥à¤¤ वीर थे, बाद में वे राजा बने और शासन करने लगे।
बहà¥à¤¤ समय पहले की बात है हिनà¥à¤¦à¥‚ पंचांग के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° लगà¤à¤— 9 लाख वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ तà¥à¤°à¥‡à¤¤à¤¾à¤¯à¥à¤— में à¤à¤• अतà¥à¤¯à¤‚त पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ªà¥€ सूरà¥à¤¯à¤µà¤‚शी राजा दशरथ हà¥à¤† करते थे। इनकी राजधानी का नाम अयोधà¥à¤¯à¤¾ था। राजा दशरथ बहà¥à¤¤ ही नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤ªà¥à¤°à¤¿à¤¯ और सदाचारी राजा थे। उसके शासन में सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤œà¤¾ सà¥à¤–पूरà¥à¤µà¤• अपना जीवन वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ करती थी। महान पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ªà¥€ सतà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦à¥€ राजा हरिशà¥à¤šà¤‚दà¥à¤° और यशसà¥à¤µà¥€ राजा à¤à¤¾à¤—ीरथी राजा दशरथ के पूरà¥à¤µà¤œà¥‹à¤‚ में से à¤à¤• थे। राजा दशरथ अपने पूरà¥à¤µà¤œà¥‹à¤‚ की à¤à¤¾à¤à¤¤à¤¿ धारà¥à¤®à¤¿à¤• कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• संलगà¥à¤¨ थे। राजा दशरथ के कोई संतान नहीं थी। जिससे वह अकà¥à¤¸à¤° उदास रहता था। राजा दशरथ की तीन रानियां थीं। पहली रानी का नाम कौशलà¥à¤¯à¤¾, दूसरी रानी का नाम सà¥à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤°à¤¾ और तीसरी रानी का नाम कैकेयी था, राजा दशरथ à¤à¤• महान धनà¥à¤°à¥à¤§à¤° थे। वह गाली गलौच में माहिर था। वह राजा दशरथ के मन में हमेशा शबà¥à¤¦ की धà¥à¤µà¤¨à¤¿ सà¥à¤¨à¤•à¤° लकà¥à¤·à¥à¤¯ को बिना देखे ही à¤à¥‡à¤¦ सकता था। इसी चिंता में डूबे राजगà¥à¤°à¥ वशिषà¥à¤ ने à¤à¤• दिन दशरथ को पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ यजà¥à¤ž करने का सà¥à¤à¤¾à¤µ दिया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शà¥à¤°à¥ƒà¤‚गी ऋषि की देखरेख में यह यजà¥à¤ž किया। इस यजà¥à¤ž में खूब दान-पà¥à¤£à¥à¤¯ किया गया। इस यजà¥à¤ž के बाद पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ के रूप में खीर तीनों रानियों को खिलाई गई। कई महीनों के बाद तीनों रानियों के चार पà¥à¤¤à¥à¤° हà¥à¤à¥¤ सबसे बड़ी रानी कौशलà¥à¤¯à¤¾ की राम, कैकेयी की à¤à¤°à¤¤ और सà¥à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤°à¤¾ की लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ और शतà¥à¤°à¥à¤§à¤¨ थीं। चारों à¤à¤¾à¤ˆ बड़े ही रूपवान और तेजसà¥à¤µà¥€ थे। महाराज दशरथ अपने चारों पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को देखकर बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤à¥¤ संतान का सà¥à¤– मिलने पर राजा दशरथ की खà¥à¤¶à¥€ का ठिकाना नहीं रहा। कà¥à¤› समय बाद चारों à¤à¤¾à¤ˆ राजगà¥à¤°à¥ वशिषà¥à¤ के साथ शिकà¥à¤·à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने के लिठवन में चले गà¤, वशिषà¥à¤ बहà¥à¤¤ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ गà¥à¤°à¥ थे। उस समय ऋषि वशिषà¥à¤ का बहà¥à¤¤ समà¥à¤®à¤¾à¤¨ था। सà¤à¥€ à¤à¤¾à¤ˆ बड़े विलकà¥à¤·à¤£ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾ के धनी थे। जबकि लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी थोड़े मिलनसार थे। शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® शांत और गंà¤à¥€à¤° सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ के थे। चारों à¤à¤¾à¤ˆ à¤à¥€ पढ़ने-लिखने में बहà¥à¤¤ होशियार थे। जलà¥à¤¦ ही उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने तीर चलाना आदि यà¥à¤¦à¥à¤§ कला सीख ली। अयोधà¥à¤¯à¤¾ के लोग उनके रूप और गà¥à¤£à¥‹à¤‚ से मà¥à¤—à¥à¤§ थे, राजा दशरथ कà¤à¥€ à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपनी आà¤à¤–ों से दूर नहीं रखना चाहते थे। à¤à¤• दिन à¤à¤• बहà¥à¤¤ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ और विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ महरà¥à¤·à¤¿ विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° राजा दशरथ के पास आà¤à¥¤ वह अपने समय के à¤à¤• महान और तपसà¥à¤µà¥€ संत थे। उसके यजà¥à¤ž में अनेक पापी और अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥€ विघà¥à¤¨ डालते थे। जब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने राम और उनके à¤à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ के बारे में सà¥à¤¨à¤¾ तो वे दशरथ के पास गà¤à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने दशरथ से पापियों और अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को मारने और राम और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ को यजà¥à¤ž की रकà¥à¤·à¤¾ करने के लिठकहा। राजा दशरथ ने हाथ जोड़कर मà¥à¤¨à¤¿ विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° से कहा- 'हे मà¥à¤¨à¤¿! राम और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ दोनों अà¤à¥€ à¤à¥€ बचà¥à¤šà¥‡ हैं। इतने सारे पापी और अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥€ लोगों के साथ इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ यà¥à¤¦à¥à¤§ में मत ले जाओ। मैं अपनी पूरी सेना और सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को आगे बढ़ाऊंगा और उनके साथ यà¥à¤¦à¥à¤§ करूंगा और आपके बलिदान की रकà¥à¤·à¤¾ à¤à¥€ करूंगा। राजा दशरथ पहले तो अपने पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को साथ नहीं à¤à¥‡à¤œà¤¨à¤¾ चाहते थे, फिर राजगà¥à¤°à¥ वशिषà¥à¤ के समà¤à¤¾à¤¨à¥‡ पर वे à¤à¥‡à¤œà¤¨à¥‡ को तैयार हो गà¤à¥¤ राम और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ दोनों ऋषि विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° के साथ चले गà¤à¥¤ रासà¥à¤¤à¥‡ में ऋषि ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दो मंतà¥à¤° सिखाà¤à¥¤ इन मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ को सीखने के बाद दोनों राजकà¥à¤®à¤¾à¤° और à¤à¥€ शकà¥à¤¤à¤¿à¤¶à¤¾à¤²à¥€ हो गà¤à¥¤ ऋषि के आशà¥à¤°à¤® में जाते समय उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ताड़का नाम की पापी और अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥€ सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ का वध कर दिया। वहाठपहà¥à¤à¤šà¤•à¤° यजà¥à¤ž की रकà¥à¤·à¤¾ करते हà¥à¤ उनके à¤à¤• पà¥à¤¤à¥à¤° मारीच और दूसरे पà¥à¤¤à¥à¤° सà¥à¤¬à¤¾à¤¹à¥ को à¤à¥€ बाण से मार डाला। अब विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° का यजà¥à¤ž बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥€ तरह और बहà¥à¤¤ शांति से समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤†à¥¤ इसके बाद महरà¥à¤·à¤¿ विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° दोनों राजकà¥à¤®à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ राम और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ को लेकर मिथिलापà¥à¤°à¥€ पहà¥à¤‚चे। मिथिला के राजा जनक बड़े विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ और ऋषि थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ सीता के सà¥à¤µà¤¯à¤‚वर की रचना की। दूर-दूर से राजा- महाराज सà¥à¤µà¤¯à¤‚वर में बड़ी धूम-धाम आ रही थी। जब विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° वहां पहà¥à¤‚चे तो राजा ने उनका जोरदार सà¥à¤µà¤¾à¤—त किया। राजा जनक के पास धनà¥à¤· था। यह धनà¥à¤· शिव का था, इसी धनà¥à¤· से उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने तà¥à¤°à¤¿à¤ªà¤¾à¤¸à¥à¤° का वध किया था। सीताजी के अतिरिकà¥à¤¤ कोई उसे उठा न सका। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह बहà¥à¤¤ à¤à¤¾à¤°à¥€ और कठोर था। राजा जनक ने वचन दिया था कि जो कोई इस धनà¥à¤· को उठाà¤à¤—ा, वह इसकी डोरी बांध देगा। उसी से सीताजी का विवाह होगा। माता सीता जी के विवाह हेतॠसà¥à¤µà¤¯à¤‚वर का आयोजन किया। पूरे आरà¥à¤¯à¤µà¥à¤°à¤¤ के बड़े वीर योदà¥à¤§à¤¾ कहलाà¤à¥¤ उस आयोजन में रावण à¤à¥€ शामिल हà¥à¤† था। सà¤à¥€ राजाओं ने बहà¥à¤¤ कोशिश की, लेकिन कोई à¤à¥€ उसे उठाकर रसà¥à¤¸à¥€ नहीं बाà¤à¤§ सका। सà¤à¥€ राजाओं ने हार मान ली थी। राजा जनक को चिंता होने लगी कि अब मैं अपनी पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के योगà¥à¤¯ वर कहां से खोजूं। तब महरà¥à¤·à¤¿ विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° ने राम को धनà¥à¤· उठाने और उस पर डोरी डालने का आदेश दिया। गà¥à¤°à¥ की आजà¥à¤žà¤¾ पाकर राम धनà¥à¤· के पास पहà¥à¤‚चे और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सहज ही धनà¥à¤· को उठा लिया और उसे तोड़ने लगे। धनà¥à¤· बांधते समय शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® के हाथ से वह धनà¥à¤· टूट गया। पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ धनà¥à¤· शिव का था, उस समय शिव के परम à¤à¤•à¥à¤¤ परशà¥à¤°à¤¾à¤® जी à¤à¥€ थे। धनà¥à¤· टूटने की आवाज सà¥à¤¨à¤•à¤° परशà¥à¤°à¤¾à¤® वहां पहà¥à¤‚चे। उसे बहà¥à¤¤ गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ आया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इस धनà¥à¤· को तोड़ने वाले की खोज शà¥à¤°à¥‚ की। परशà¥à¤°à¤¾à¤® के कà¥à¤°à¥‹à¤§ को देखकर पूरी सà¤à¤¾ में सनà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¤¾ पसर गया। डर के मारे कोई कà¥à¤› नहीं बोल रहा था। लेकिन लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी डरे नहीं, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने परशà¥à¤°à¤¾à¤® जी से विवाद करना शà¥à¤°à¥‚ कर दिया, जिसके कारण परशà¥à¤°à¤¾à¤® का कà¥à¤°à¥‹à¤§ बढ़ने लगा। लेकिन शà¥à¤°à¥€ राम ने विनमà¥à¤°à¤¤à¤¾ से हाथ जोड़कर परशà¥à¤°à¤¾à¤® जी से गलती से धनà¥à¤· तोड़ने का अनà¥à¤°à¥‹à¤§ किया और उनसे कà¥à¤·à¤®à¤¾ मांगी। राम के सरल शांत सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ को देखकर परशà¥à¤°à¤¾à¤® का कà¥à¤°à¥‹à¤§ शांत हà¥à¤† और वे वहां से चले गà¤à¥¤ उनके जाने के तà¥à¤°à¤‚त बाद, बैठक में सà¤à¥€ ने राहत की सांस ली। परशà¥à¤°à¤¾à¤® के जाने के बाद राजा जनक महरà¥à¤·à¤¿ विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° के पास गठऔर उनसे पूछा- 'हे मà¥à¤¨à¤¿: ये दो यà¥à¤µà¤• कौन हैं, इस रूप के राजा, कृपया उनके बारे में बताà¤à¤‚।' ऋषि विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° ने राजा जनक से कहा- ये दोनों à¤à¤¾à¤ˆ राम और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£, ये दोनों अयोधà¥à¤¯à¤¾ के राजा दशरथ के पà¥à¤¤à¥à¤° हैं। राजा दशरथ के चार पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में, राम सबसे बड़े हैं जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने धनà¥à¤· तोड़ा। ऋषि दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ शà¥à¤°à¥€ राम का परिचय सà¥à¤¨à¤•à¤° उनकी खà¥à¤¶à¥€ का ठिकाना नहीं रहा। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• राजा दशरथ के चारों पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के साथ सीता सहित अपनी चार पà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का विवाह करने का निशà¥à¤šà¤¯ किया।राजा जनक ने महरà¥à¤·à¤¿ से चारों के विवाह का अनà¥à¤°à¥‹à¤§ किया, महरà¥à¤·à¤¿ ने सहरà¥à¤· सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° कर लिया।ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ राजा जनक के दरबार में उतà¥à¤¸à¤µ शà¥à¤°à¥‚ हो गया, मिठाइयां बांटी गईं, ढोल नगाड़े बजाठगà¤à¥¤ बजने लगा। ऋषि ने यह शà¥à¤ संदेश अयोधà¥à¤¯à¤¾ à¤à¥‡à¤œà¤¾à¥¤ अयोधà¥à¤¯à¤¾ में, राजा दशरथ ने समाचार सà¥à¤¨à¤•à¤°, पूरी अयोधà¥à¤¯à¤¾ को सजाने और लोगों को उपहार वितरित करने का आदेश दिया। पूरी अयोधà¥à¤¯à¤¾ अपने राजकà¥à¤®à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ के विवाह का जशà¥à¤¨ मनाने लगी। राजा दशरथ अपने पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ की बारात की तैयारी करने लगे। कई हजार हाथियों को सजाया गया, सैकड़ों रथ बनाठगà¤à¥¤ शोà¤à¤¾à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¾ में समूची अयोधà¥à¤¯à¤¾ नगरी मिथिलापà¥à¤° पहà¥à¤‚ची। मिथिलापà¥à¤° नरेश जनक की बारात की तैयारियों में कोई कमी नहीं आई। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने आगे बढ़कर बारात का सà¥à¤µà¤¾à¤—त किया, राजा दशरथ को गले से लगाया और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बहà¥à¤¤ समà¥à¤®à¤¾à¤¨ दिया। शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® के विवाह में अयोधà¥à¤¯à¤¾ के सà¤à¥€ लोग नाच-गा रहे थे। पूरे आरà¥à¤¯à¤µà¥à¤°à¤¤ में उतà¥à¤¸à¤µ का माहौल था। चारों à¤à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ की शादी धूमधाम से हà¥à¤ˆà¥¤ शà¥à¤°à¥€ रामचनà¥à¤¦à¥à¤° जी का विवाह माता सीता से, लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी का विवाह माता उरà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¾ से, à¤à¤°à¤¤ जी का विवाह माता मैंडी से तथा शतà¥à¤°à¥à¤§à¤¨ जी का विवाह माता शà¥à¤°à¥à¤¤à¤¿à¤•à¥€à¤°à¥à¤¤à¤¿ से हà¥à¤†à¥¤ विवाह के बाद राजा दशरथ सबके साथ वापस अयोधà¥à¤¯à¤¾ आ गà¤à¥¤ राजा अब सà¥à¤–पूरà¥à¤µà¤• शासन करने लगा। समय बीतता गया और राजा दशरथ अब बूढ़े होने लगे थे। वे रामचनà¥à¤¦à¥à¤° जी को राजकारà¥à¤¯ देकर सà¥à¤µà¤¯à¤‚ तपसà¥à¤¯à¤¾ करना चाहते थे। गà¥à¤°à¥ वशिषà¥à¤ के कहने पर शà¥à¤°à¥€ राम के राजà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• के लिठà¤à¤• शà¥à¤ दिन निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ किया गया। जब सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤œà¤¾ को यह समाचार मिला कि शà¥à¤°à¥€ राम उनके राजा बनने वाले हैं तो सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤œà¤¾ की खà¥à¤¶à¥€ का ठिकाना नहीं रहा। खूब खà¥à¤¶à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ मनाई जा रही थी। हर तरफ खà¥à¤¶à¥€ का माहौल था। सबके चेहरे पर हंसी बिखर गई, सब महल सजाने और राजà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• की तैयारियों में जà¥à¤Ÿ गà¤à¥¤ इन तमाम चेहरों में à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ चेहरा à¤à¥€ था जिस पर दà¥à¤– और बदले की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ साफ नजर आ रही थी। वह चेहरा कोई और नहीं बलà¥à¤•à¤¿ रानी कैकेयी की दासी मंथरा का था। मंथरा को शà¥à¤°à¥€ राम जी का राजा होना पसंद नहीं था, वह à¤à¤°à¤¤ जी को राजा के रूप में देखना चाहती थीं। वह उदास होकर रानी कैकेयी के पास चली गईं। महारानी कैकेयी शà¥à¤°à¥€ राम के राजà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• के निरà¥à¤£à¤¯ से बहà¥à¤¤ खà¥à¤¶ थीं और उतà¥à¤¸à¤µ की तैयारियों का जायजा ले रही थीं। मंथरा का लटका हà¥à¤† चेहरा देखकर पहले तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ आया लेकिन मंथरा ने बड़ी चतà¥à¤°à¤¾à¤ˆ से काम लिया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि मैं अपने लिठथोड़ा दà¥à¤–ी हूं, आपके पà¥à¤¤à¥à¤° राजकà¥à¤®à¤¾à¤° à¤à¤°à¤¤ की चिंता के लिठदà¥à¤–ी हूं। à¤à¤°à¤¤ का नाम सà¥à¤¨à¤•à¤° रानी ने कहा, चिंता की कà¥à¤¯à¤¾ बात है, साफ-साफ बोलो। मंथरा ने रानी कैके को à¤à¤•à¤¾à¤‚त में ले लिया और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कई अपरंपरागत चीजें सिखाईं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने चालाकी से कैकेय के मन में पà¥à¤¤à¥à¤° के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ आसकà¥à¤¤à¤¿ जगा दी और राजा दशरथ को विवाह से पहले किनà¥à¤¹à¥€à¤‚ दो मांगों को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करने की याद दिलाते हà¥à¤ à¤à¤°à¤¤ को राजी करने के लिठराजी कर लिया। राजा दशरथ और रानी कैकेयी के विवाह से पहले à¤à¤• यà¥à¤¦à¥à¤§ के दौरान कैकेयी ने राजा दशरथ की जान बचाई थी। राजकà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ कैकेयी सà¥à¤‚दर थी, राजा दशरथ ने उनसे विवाह करने का अनà¥à¤°à¥‹à¤§ किया, रानी कैकेयी ने दो वचन मांगे, राजा दशरथ मान गठऔर दोनों का विवाह हो गया। मंथरा की बात मानकर रानी ने अपना मà¥à¤– उदास कर लिया, केश खोल दिये और रोती हà¥à¤ˆ कोपà¤à¤µà¤¨ में सो गयी। यह बात राजा दशरथ तक पहà¥à¤‚ची, राजा तà¥à¤°à¤‚त रानी के महल पहà¥à¤‚चे। à¤à¤¸à¥€ दशा देखकर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बहà¥à¤¤ दà¥:ख हà¥à¤†à¥¤ वह कैकेयी से बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¥‡à¤® करता था उसने पूछा। "हे केक! उदास कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ हो, सब देखो तà¥à¤® कितने खà¥à¤¶ हो आखिर, बताओ तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤¯à¤¾ चाहिà¤à¥¤ मैं दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को खोजकर साड़ी लाऊंगा, तà¥à¤® दà¥à¤–ी मत हो, मà¥à¤à¥‡ बताओ कि तà¥à¤® कà¥à¤¯à¤¾ चाहते हो? रानी कैकेयी उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ राजा दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ विवाह से पहले दिठगठदो वचनों की याद दिलाई और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पहली मांग के रूप में शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® से 12 वरà¥à¤· का वनवास और दूसरी मांग में à¤à¤°à¤¤ को राजा बनाने की मांग की।रानी कैकेयी की मांग सà¥à¤¨à¤•à¤° राजा दशरथ का दिल बैठगया। वह दà¥:ख से वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤² होने लगा, किसी तरह अपने आप को संà¤à¤¾à¤²à¤¤à¥‡ हà¥à¤ उसने कैकेयी से कहा- हे कैकेयी, तà¥à¤® इतनी निरà¥à¤¦à¤¯à¥€ कैसे हो सकती हो? मैं उसके बिना à¤à¤• पल à¤à¥€ नहीं रह सकता ।राजा दशरथ ने कैकेयी को बहà¥à¤¤ मनाने की कोशिश की लेकिन कैकेयी अपनी मांग पर अड़ी रही। 'रघà¥à¤•à¥à¤² की रीत सदा चली, पर शबà¥à¤¦ न जाय'। शà¥à¤°à¥€ राम ने कà¤à¥€ कà¥à¤² की मरà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ का उलà¥à¤²à¤‚घन नहीं किया, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपने पिता के वचन का पता चल गया। इसके साथ ही माता कैकेयी की दो मांगें à¤à¥€ बताई गईं। उसने शीघà¥à¤° ही निशà¥à¤šà¤¯ कर लिया कि उसके कारण उसके पिता का वचन नहीं टूट सकता और उसने वन जाने का निशà¥à¤šà¤¯ किया। शà¥à¤°à¥€ राम अपने महल में माता कैकेयी के पास गठऔर हाथ जोड़कर विनती की। हे माता! आप बिलà¥à¤•à¥à¤² दà¥à¤–ी न हों, मैं शीघà¥à¤° ही वनवास को पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ करूंगा। यदि मेरा अनà¥à¤œ à¤à¤°à¤¤ राजा हà¥à¤† तो मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ होगी, तà¥à¤® अपना शोक तà¥à¤¯à¤¾à¤— दो। यह कहकर शà¥à¤°à¥€ रामचंदà¥à¤° माता सीता और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी सहित 12 वरà¥à¤· के वनवास पर चले गà¤à¥¤ राम के विरह में राजा दशरथ फूट-फूट कर रो रहे थे। उनका मन बहà¥à¤¤ उदास हो गया। राजा दशरथ के साथ पूरी अयोधà¥à¤¯à¤¾ नगरी में मातम छा गया। अपने पà¥à¤°à¤¿à¤¯ राजकà¥à¤®à¤¾à¤° और उसकी पतà¥à¤¨à¥€ के वनवास की बात सà¥à¤¨à¤•à¤° पà¥à¤°à¤œà¤¾ à¤à¥€ रोने लगी, मानो सारी अयोधà¥à¤¯à¤¾ पर विपदा आ पड़ी हो, पकà¥à¤·à¥€ चहचहाने लगे हों और फूल खिलना बंद हो गठहों। अयोधà¥à¤¯à¤¾ के लोग à¤à¥€ वनवास के बाद जाने लगे, पà¥à¤°à¤¿à¤¯ राजकà¥à¤®à¤¾à¤°, शà¥à¤°à¥€ राम ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बहà¥à¤¤ समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ लेकिन किसी ने नहीं सà¥à¤¨à¤¾, तब राम ने सबको अकेला छोड़कर लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ और सीता के साथ सरयू नदी पार की, à¤à¤°à¤¤ जी अयोधà¥à¤¯à¤¾ में नहीं थे जब वे जंगल में गया था, वह अपने नाना के घर गया हà¥à¤† था। इधर दशरथ महाराज की हालत बिगड़ती जा रही थी, बेटे के मोह में रो-रो कर उनके पà¥à¤°à¤¾à¤£ उखड़ गà¤à¥¤ जब राजा दशरथ की मृतà¥à¤¯à¥ हà¥à¤ˆ तो उनके साथ कोई पà¥à¤¤à¥à¤° नहीं था। बाद में शà¥à¤°à¤µà¤£ कà¥à¤®à¤¾à¤° के माता-पिता दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ राजा दशरथ को दिया गया शà¥à¤°à¤¾à¤ª फलीà¤à¥‚त हà¥à¤†à¥¤ रामचंदà¥à¤° जी के जाने के बाद नाना के घर से à¤à¤°à¤¤ जी को बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ गया। तब तक वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• विधि से राजा दशरथ के शरीर को किसी तेल में सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ रख दिया गया। à¤à¤°à¤¤ जी अयोधà¥à¤¯à¤¾ लौट आà¤à¥¤ जब उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सारा किसà¥à¤¸à¤¾ पता चला तो वे बहà¥à¤¤ दà¥à¤–ी हà¥à¤ और अपनी माता कैकेयी को à¤à¥€ बहà¥à¤¤ बà¥à¤°à¤¾-à¤à¤²à¤¾ कहा। राजा दशरथ की मृतà¥à¤¯à¥ के बाद उनकी माà¤à¤— पर रानी को à¤à¥€ बहà¥à¤¤ पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¤¾à¤ª हà¥à¤†à¥¤ à¤à¤°à¤¤ जी ने शीघà¥à¤° ही अपने पिता दशरथ का विधिवत दाह संसà¥à¤•à¤¾à¤° किया। इसके बाद à¤à¤°à¤¤ जी रामचंदà¥à¤° जी को वापस लाने के लिठवन में चले गà¤à¥¤ à¤à¤°à¤¤ जी अयोधà¥à¤¯à¤¾ की सेना को à¤à¥€ अपने साथ वन ले गठथे, जिससे लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी के मन में शंका उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ˆ कि वे à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ शà¥à¤°à¥€ से यà¥à¤¦à¥à¤§ करने आ रहे हैं, ताकि वे शà¥à¤°à¥€ राम का वध कर अयोधà¥à¤¯à¤¾ का राजà¥à¤¯ सदा के लिठले लें, और बने रहें जीवन के लिठराजा। लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी अपना धनà¥à¤· बाण लेकर à¤à¤¾à¤°à¤¤ से यà¥à¤¦à¥à¤§ करने की तैयारी करने लगे और शà¥à¤°à¥€ राम से à¤à¥€ तैयारी करने को कहने लगे। लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी बहà¥à¤¤ कà¥à¤°à¥‹à¤§à¤¿à¤¤ हà¥à¤, वे à¤à¤°à¤¤ को मारने का पà¥à¤°à¤£ लेने जा रहे थे, तà¤à¥€ शà¥à¤°à¥€ राम ने लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी को समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ और कहा कि à¤à¤°à¤¤ à¤à¤¸à¤¾ नहीं है, यदि मैं अà¤à¥€ इशारा कर दूं तो वह तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ पूरा राजà¥à¤¯ दे सकते हैं। फिर उसने अपना वादा टाल दिया। शà¥à¤°à¥€ राम सही थे, à¤à¤°à¤¤ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ यà¥à¤¦à¥à¤§ न करने के लिठवापस बà¥à¤²à¤¾à¤¨à¥‡ आठथे, लेकिन शà¥à¤°à¥€ राम ने वापस जाने से मना कर दिया। à¤à¤°à¤¤ जी के बहà¥à¤¤ आगà¥à¤°à¤¹ करने पर à¤à¥€ राम जी नहीं माने। अंत में à¤à¤°à¤¤ अपनी चरण पादà¥à¤•à¤¾à¤“ं के साथ वापस अयोधà¥à¤¯à¤¾ आ गठऔर इन पादà¥à¤•à¤¾à¤“ं को सिंहासन पर बिठाकर राजà¥à¤¯ चलाने लगे। कà¥à¤› समय बाद शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ और सीता सहित दंडकारणà¥à¤¯ नामक वन में पहà¥à¤‚चे। वहाठमहापराकà¥à¤°à¤®à¥€ रावण शूरà¥à¤ªà¤£à¤–ा शà¥à¤°à¥€ राम के रूप पर मोहित हो गई। वह शà¥à¤°à¥€ राम से विवाह करना चाहती थी। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® के सामने उनके विवाह का पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤µ रखा। शà¥à¤°à¥€ राम बोले- 'मेरा विवाह हो गया है, देखो मेरा छोटा à¤à¤¾à¤ˆ लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ है, वह à¤à¥€ अति सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° है, तà¥à¤® उसके पास कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं जाते। à¤à¤¸à¤¾ कहकर शà¥à¤°à¥€ राम ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी के पास à¤à¥‡à¤œ दिया। वह लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी के पास गई। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सरà¥à¤ªà¤¨à¤–ा पर बहà¥à¤¤ गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ आया, विवाह करना तो दूर लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी ने उनकी नाक काट दी। उसका चेहरा बहà¥à¤¤ कà¥à¤°à¥‚प हो गया। उसकी पूरी नाक कटी हà¥à¤ˆ थी। बड़ी हिमà¥à¤®à¤¤ करके वह अपने à¤à¤¾à¤ˆ के पास गई और सारी बात कह सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆà¥¤ शूरà¥à¤ªà¤£à¤–ा ने सीता के सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ का वरà¥à¤£à¤¨ करके रावण के हृदय में मोह जगा दिया। रावण बलपूरà¥à¤µà¤• सà¥à¤‚दरी को पाने की तैयारी करने लगा। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने राम और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ के ठिकाने का पता लगाया। उसके पास मारीच नाम का à¤à¤• पालतू हिरण था। जो अनà¥à¤¯ मृगों से अधिक सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° था, उस मृग को अपने आशà¥à¤°à¤® के पास छोड़ आया। वह मृग शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® के आशà¥à¤°à¤® में इधर-उधर घूमने लगा। सोने के रंग के मृग को देखकर सीता जी मोहित हो गईं और शà¥à¤°à¥€ राम से उस सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मृग को पकड़ने का आगà¥à¤°à¤¹ करने लगीं। रामजी माता सीता को मना नहीं कर सके। शà¥à¤°à¥€ राम ने माता सीता को à¤à¥‹à¤ªà¤¡à¤¼à¥€ के अंदर रहने और सतरà¥à¤• रहने को कहा और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ के साथ हिरण का पीछा किया और उसकी खोज में निकल पड़े। अंत में कà¥à¤à¤µà¤° मास के दशहरा के दिन शà¥à¤°à¥€ रामचनà¥à¤¦à¥à¤°à¤œà¥€ ने रावण का वध किया, सीताजी लौट आयीं। सीता से मिलकर शà¥à¤°à¥€ राम अतà¥à¤¯à¤‚त पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤, उनके साथ-साथ पूरी सेना उतà¥à¤¸à¤µ मनाने लगी। अब चौदह वरà¥à¤· समापà¥à¤¤ होने को थे। रामचंदà¥à¤° जी ने लंका का राजà¥à¤¯ विà¤à¥€à¤·à¤£ को दे दिया, इसके बाद वे अयोधà¥à¤¯à¤¾ लौट आà¤à¥¤ उनके साथ हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी, सà¥à¤—à¥à¤°à¥€à¤µ जी आदि à¤à¥€ आठथे। आज à¤à¥€ यह दिन को दीपावली परà¥à¤µ के रूप में मनाया जाता है। अब à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® का राजà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• पूरे धूमधाम से हà¥à¤†à¥¤ à¤à¤• बार फिर से पूरे à¤à¤¾à¤°à¤¤ में शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® के राजà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• की तैयारियां जोरों पर होने लगीं। हर कोई अपने चहेते राजकà¥à¤®à¤¾à¤° को जलà¥à¤¦ ही राजा बनते देखना चाहता था। वह अपने अधूरे सपने को पूरा करना चाहते थे। आखिर वह शà¥à¤ घड़ी आ ही गई और शà¥à¤°à¥€ राम का à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• राजà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• हà¥à¤†, शà¥à¤°à¥€ राम माता सीता के साथ सिंहासन पर विराजमान हà¥à¤ और बड़ी कà¥à¤¶à¤²à¤¤à¤¾ से अपना धरà¥à¤® निà¤à¤¾à¤¤à¥‡ हà¥à¤ पà¥à¤°à¤œà¤¾ की सेवा करने लगे। उनके राजà¥à¤¯ में मनà¥à¤·à¥à¤¯ ही मनà¥à¤·à¥à¤¯ है, सà¤à¥€ जीव-जंतà¥, पशà¥-पकà¥à¤·à¥€, पेड़-पौधे सà¤à¥€ आनंदित थे। सब सà¥à¤– से रहते थे। राम चरित मानस में तà¥à¤²à¤¸à¥€ दास महाराज जी राम राजà¥à¤¯ का वरà¥à¤£à¤¨ करते हà¥à¤ कहते हैं कि राम राजà¥à¤¯ में सूरà¥à¤¯ उतनी ही गरà¥à¤®à¥€ देता था जितनी शरीर सहन कर सकता था, वरà¥à¤·à¤¾ केवल उतनी ही होती थी जितनी फसल और पशॠसहन कर सकता है। पेड़ फलों से लदे थे। तरह-तरह के फूल तरह-तरह की सà¥à¤—ंध बिखेर रहे थे। à¤à¤• दिन शà¥à¤°à¥€ राम ने अपनी पà¥à¤°à¤œà¤¾ के हित को बारीकी से समà¤à¤¨à¥‡ के लिठजनता के बीच जाने का निशà¥à¤šà¤¯ किया। कोई उसे पहचान न पाठइसलिठउसने अपना à¤à¥‡à¤· बदल लिया। शà¥à¤°à¥€ राम नगर में घूमते हà¥à¤ à¤à¤• पेड़ के नीचे जहां पहले से कà¥à¤› लोग मौजूद थे, उनके पास रà¥à¤• गà¤à¥¤ वहाठà¤à¤• धोबी की बातों से शà¥à¤°à¥€ राम बहà¥à¤¤ दà¥à¤–ी हà¥à¤ और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ फिर से कठोर निरà¥à¤£à¤¯ लेने पर विवश कर दिया। उस धोबी ने माता सीता से पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ किया, जिससे शà¥à¤°à¥€ राम दà¥à¤–ी हो गà¤à¥¤ वह वापस महल में आया और अपनी पà¥à¤°à¤œà¤¾ की संतà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ के लिठमाता सीता को वालà¥à¤®à¥€à¤•à¤¿ के आशà¥à¤°à¤® à¤à¥‡à¤œà¤¨à¥‡ का कठोर निरà¥à¤£à¤¯ लिया। लोक लाज के कारण माता सीता जी को वालà¥à¤®à¥€à¤•à¤¿ आशà¥à¤°à¤® में रहना पड़ा। इसी आशà¥à¤°à¤® में माता सीता ने दो तेजसà¥à¤µà¥€ पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को जनà¥à¤® दिया, जिनके नाम लव और कà¥à¤¶ थे। ये दोनों ही महरà¥à¤·à¤¿ वालà¥à¤®à¥€à¤•à¤¿ के शिषà¥à¤¯ थे और वेदों के जà¥à¤žà¤¾à¤¨ और यà¥à¤¦à¥à¤§ में पारंगत और वीर बन गठथे। रामचंदà¥à¤° ने अशà¥à¤µà¤®à¥‡à¤§ यजà¥à¤ž किया। इस समय पà¥à¤°à¤œà¤¾ की माà¤à¤— पर सीताजी को बार-बार बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ गया, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अगà¥à¤¨à¤¿ परीकà¥à¤·à¤¾ देने के लिठकहा गया, इससे माता सीता फिर बहà¥à¤¤ दà¥à¤–ी हà¥à¤ˆà¤‚ और अपनी पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ की शपथ लेकर मन ही मन à¤à¤—वान से याचना कीं धरती फटने और à¤à¥‚कमà¥à¤ª आने की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि धरती फट जाने से माता सीता परम पवितà¥à¤° सिदà¥à¤§ हो गईं और माता सीता हमेशा-हमेशा के लिठधरती में समा गईं। पà¥à¤°à¤à¥ शà¥à¤°à¥€ राम बहà¥à¤¤ दà¥à¤–ी हà¥à¤, वे हमेशा के लिठअकेले हो गà¤, कà¥à¤› समय बाद शà¥à¤°à¥€ राम ने à¤à¥€ सरयू में अपना शरीर तà¥à¤¯à¤¾à¤— दिया और जल समाधि ले ली। लव और कà¥à¤¶ बहà¥à¤¤ वीर थे, बाद में वे राजा बने और शासन करने लगे।
शà¥à¤°à¥€ राम (à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• कहानी)
बहà¥à¤¤ समय पहले की बात है हिनà¥à¤¦à¥‚ पंचांग के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° लगà¤à¤— 9 लाख वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ तà¥à¤°à¥‡à¤¤à¤¾à¤¯à¥à¤— में à¤à¤• अतà¥à¤¯à¤‚त पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ªà¥€ सूरà¥à¤¯à¤µà¤‚शी राजा दशरथ हà¥à¤† करते थे। इनकी राजधानी का नाम अयोधà¥à¤¯à¤¾ था। राजा दशरथ बहà¥à¤¤ ही नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤ªà¥à¤°à¤¿à¤¯ और सदाचारी राजा थे। उसके शासन में सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤œà¤¾ सà¥à¤–पूरà¥à¤µà¤• अपना जीवन वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ करती थी। महान पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ªà¥€ सतà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦à¥€ राजा हरिशà¥à¤šà¤‚दà¥à¤° और यशसà¥à¤µà¥€ राजा à¤à¤¾à¤—ीरथी राजा दशरथ के पूरà¥à¤µà¤œà¥‹à¤‚ में से à¤à¤• थे। राजा दशरथ अपने पूरà¥à¤µà¤œà¥‹à¤‚ की à¤à¤¾à¤à¤¤à¤¿ धारà¥à¤®à¤¿à¤• कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में अतà¥à¤¯à¤§à¤¿à¤• संलगà¥à¤¨ थे। राजा दशरथ के कोई संतान नहीं थी। जिससे वह अकà¥à¤¸à¤° उदास रहता था। राजा दशरथ की तीन रानियां थीं। पहली रानी का नाम कौशलà¥à¤¯à¤¾, दूसरी रानी का नाम सà¥à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤°à¤¾ और तीसरी रानी का नाम कैकेयी था, राजा दशरथ à¤à¤• महान धनà¥à¤°à¥à¤§à¤° थे। वह गाली गलौच में माहिर था। वह राजा दशरथ के मन में हमेशा शबà¥à¤¦ की धà¥à¤µà¤¨à¤¿ सà¥à¤¨à¤•à¤° लकà¥à¤·à¥à¤¯ को बिना देखे ही à¤à¥‡à¤¦ सकता था। इसी चिंता में डूबे राजगà¥à¤°à¥ वशिषà¥à¤ ने à¤à¤• दिन दशरथ को पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ यजà¥à¤ž करने का सà¥à¤à¤¾à¤µ दिया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शà¥à¤°à¥ƒà¤‚गी ऋषि की देखरेख में यह यजà¥à¤ž किया। इस यजà¥à¤ž में खूब दान-पà¥à¤£à¥à¤¯ किया गया। इस यजà¥à¤ž के बाद पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ के रूप में खीर तीनों रानियों को खिलाई गई। कई महीनों के बाद तीनों रानियों के चार पà¥à¤¤à¥à¤° हà¥à¤à¥¤ सबसे बड़ी रानी कौशलà¥à¤¯à¤¾ की राम, कैकेयी की à¤à¤°à¤¤ और सà¥à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤°à¤¾ की लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ और शतà¥à¤°à¥à¤§à¤¨ थीं। चारों à¤à¤¾à¤ˆ बड़े ही रूपवान और तेजसà¥à¤µà¥€ थे। महाराज दशरथ अपने चारों पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को देखकर बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤à¥¤ संतान का सà¥à¤– मिलने पर राजा दशरथ की खà¥à¤¶à¥€ का ठिकाना नहीं रहा। कà¥à¤› समय बाद चारों à¤à¤¾à¤ˆ राजगà¥à¤°à¥ वशिषà¥à¤ के साथ शिकà¥à¤·à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने के लिठवन में चले गà¤, वशिषà¥à¤ बहà¥à¤¤ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ गà¥à¤°à¥ थे। उस समय ऋषि वशिषà¥à¤ का बहà¥à¤¤ समà¥à¤®à¤¾à¤¨ था। सà¤à¥€ à¤à¤¾à¤ˆ बड़े विलकà¥à¤·à¤£ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾ के धनी थे। जबकि लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी थोड़े मिलनसार थे। शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® शांत और गंà¤à¥€à¤° सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ के थे। चारों à¤à¤¾à¤ˆ à¤à¥€ पढ़ने-लिखने में बहà¥à¤¤ होशियार थे। जलà¥à¤¦ ही उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने तीर चलाना आदि यà¥à¤¦à¥à¤§ कला सीख ली। अयोधà¥à¤¯à¤¾ के लोग उनके रूप और गà¥à¤£à¥‹à¤‚ से मà¥à¤—à¥à¤§ थे, राजा दशरथ कà¤à¥€ à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपनी आà¤à¤–ों से दूर नहीं रखना चाहते थे। à¤à¤• दिन à¤à¤• बहà¥à¤¤ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ और विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ महरà¥à¤·à¤¿ विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° राजा दशरथ के पास आà¤à¥¤ वह अपने समय के à¤à¤• महान और तपसà¥à¤µà¥€ संत थे। उसके यजà¥à¤ž में अनेक पापी और अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥€ विघà¥à¤¨ डालते थे। जब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने राम और उनके à¤à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ के बारे में सà¥à¤¨à¤¾ तो वे दशरथ के पास गà¤à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने दशरथ से पापियों और अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को मारने और राम और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ को यजà¥à¤ž की रकà¥à¤·à¤¾ करने के लिठकहा। राजा दशरथ ने हाथ जोड़कर मà¥à¤¨à¤¿ विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° से कहा- 'हे मà¥à¤¨à¤¿! राम और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ दोनों अà¤à¥€ à¤à¥€ बचà¥à¤šà¥‡ हैं। इतने सारे पापी और अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥€ लोगों के साथ इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ यà¥à¤¦à¥à¤§ में मत ले जाओ। मैं अपनी पूरी सेना और सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को आगे बढ़ाऊंगा और उनके साथ यà¥à¤¦à¥à¤§ करूंगा और आपके बलिदान की रकà¥à¤·à¤¾ à¤à¥€ करूंगा। राजा दशरथ पहले तो अपने पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को साथ नहीं à¤à¥‡à¤œà¤¨à¤¾ चाहते थे, फिर राजगà¥à¤°à¥ वशिषà¥à¤ के समà¤à¤¾à¤¨à¥‡ पर वे à¤à¥‡à¤œà¤¨à¥‡ को तैयार हो गà¤à¥¤ राम और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ दोनों ऋषि विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° के साथ चले गà¤à¥¤ रासà¥à¤¤à¥‡ में ऋषि ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दो मंतà¥à¤° सिखाà¤à¥¤ इन मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ को सीखने के बाद दोनों राजकà¥à¤®à¤¾à¤° और à¤à¥€ शकà¥à¤¤à¤¿à¤¶à¤¾à¤²à¥€ हो गà¤à¥¤ ऋषि के आशà¥à¤°à¤® में जाते समय उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ताड़का नाम की पापी और अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥€ सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ का वध कर दिया। वहाठपहà¥à¤à¤šà¤•à¤° यजà¥à¤ž की रकà¥à¤·à¤¾ करते हà¥à¤ उनके à¤à¤• पà¥à¤¤à¥à¤° मारीच और दूसरे पà¥à¤¤à¥à¤° सà¥à¤¬à¤¾à¤¹à¥ को à¤à¥€ बाण से मार डाला। अब विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° का यजà¥à¤ž बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥€ तरह और बहà¥à¤¤ शांति से समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤†à¥¤ इसके बाद महरà¥à¤·à¤¿ विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° दोनों राजकà¥à¤®à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ राम और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ को लेकर मिथिलापà¥à¤°à¥€ पहà¥à¤‚चे। मिथिला के राजा जनक बड़े विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ और ऋषि थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ सीता के सà¥à¤µà¤¯à¤‚वर की रचना की। दूर-दूर से राजा- महाराज सà¥à¤µà¤¯à¤‚वर में बड़ी धूम-धाम आ रही थी। जब विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° वहां पहà¥à¤‚चे तो राजा ने उनका जोरदार सà¥à¤µà¤¾à¤—त किया। राजा जनक के पास धनà¥à¤· था। यह धनà¥à¤· शिव का था, इसी धनà¥à¤· से उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने तà¥à¤°à¤¿à¤ªà¤¾à¤¸à¥à¤° का वध किया था। सीताजी के अतिरिकà¥à¤¤ कोई उसे उठा न सका। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह बहà¥à¤¤ à¤à¤¾à¤°à¥€ और कठोर था। राजा जनक ने वचन दिया था कि जो कोई इस धनà¥à¤· को उठाà¤à¤—ा, वह इसकी डोरी बांध देगा। उसी से सीताजी का विवाह होगा। माता सीता जी के विवाह हेतॠसà¥à¤µà¤¯à¤‚वर का आयोजन किया। पूरे आरà¥à¤¯à¤µà¥à¤°à¤¤ के बड़े वीर योदà¥à¤§à¤¾ कहलाà¤à¥¤ उस आयोजन में रावण à¤à¥€ शामिल हà¥à¤† था। सà¤à¥€ राजाओं ने बहà¥à¤¤ कोशिश की, लेकिन कोई à¤à¥€ उसे उठाकर रसà¥à¤¸à¥€ नहीं बाà¤à¤§ सका। सà¤à¥€ राजाओं ने हार मान ली थी। राजा जनक को चिंता होने लगी कि अब मैं अपनी पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के योगà¥à¤¯ वर कहां से खोजूं। तब महरà¥à¤·à¤¿ विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° ने राम को धनà¥à¤· उठाने और उस पर डोरी डालने का आदेश दिया। गà¥à¤°à¥ की आजà¥à¤žà¤¾ पाकर राम धनà¥à¤· के पास पहà¥à¤‚चे और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सहज ही धनà¥à¤· को उठा लिया और उसे तोड़ने लगे। धनà¥à¤· बांधते समय शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® के हाथ से वह धनà¥à¤· टूट गया। पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ धनà¥à¤· शिव का था, उस समय शिव के परम à¤à¤•à¥à¤¤ परशà¥à¤°à¤¾à¤® जी à¤à¥€ थे। धनà¥à¤· टूटने की आवाज सà¥à¤¨à¤•à¤° परशà¥à¤°à¤¾à¤® वहां पहà¥à¤‚चे। उसे बहà¥à¤¤ गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ आया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इस धनà¥à¤· को तोड़ने वाले की खोज शà¥à¤°à¥‚ की। परशà¥à¤°à¤¾à¤® के कà¥à¤°à¥‹à¤§ को देखकर पूरी सà¤à¤¾ में सनà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¤¾ पसर गया। डर के मारे कोई कà¥à¤› नहीं बोल रहा था। लेकिन लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी डरे नहीं, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने परशà¥à¤°à¤¾à¤® जी से विवाद करना शà¥à¤°à¥‚ कर दिया, जिसके कारण परशà¥à¤°à¤¾à¤® का कà¥à¤°à¥‹à¤§ बढ़ने लगा। लेकिन शà¥à¤°à¥€ राम ने विनमà¥à¤°à¤¤à¤¾ से हाथ जोड़कर परशà¥à¤°à¤¾à¤® जी से गलती से धनà¥à¤· तोड़ने का अनà¥à¤°à¥‹à¤§ किया और उनसे कà¥à¤·à¤®à¤¾ मांगी। राम के सरल शांत सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ को देखकर परशà¥à¤°à¤¾à¤® का कà¥à¤°à¥‹à¤§ शांत हà¥à¤† और वे वहां से चले गà¤à¥¤ उनके जाने के तà¥à¤°à¤‚त बाद, बैठक में सà¤à¥€ ने राहत की सांस ली। परशà¥à¤°à¤¾à¤® के जाने के बाद राजा जनक महरà¥à¤·à¤¿ विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° के पास गठऔर उनसे पूछा- 'हे मà¥à¤¨à¤¿: ये दो यà¥à¤µà¤• कौन हैं, इस रूप के राजा, कृपया उनके बारे में बताà¤à¤‚।' ऋषि विशà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤° ने राजा जनक से कहा- ये दोनों à¤à¤¾à¤ˆ राम और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£, ये दोनों अयोधà¥à¤¯à¤¾ के राजा दशरथ के पà¥à¤¤à¥à¤° हैं। राजा दशरथ के चार पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में, राम सबसे बड़े हैं जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने धनà¥à¤· तोड़ा। ऋषि दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ शà¥à¤°à¥€ राम का परिचय सà¥à¤¨à¤•à¤° उनकी खà¥à¤¶à¥€ का ठिकाना नहीं रहा। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• राजा दशरथ के चारों पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के साथ सीता सहित अपनी चार पà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का विवाह करने का निशà¥à¤šà¤¯ किया।राजा जनक ने महरà¥à¤·à¤¿ से चारों के विवाह का अनà¥à¤°à¥‹à¤§ किया, महरà¥à¤·à¤¿ ने सहरà¥à¤· सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° कर लिया।ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ राजा जनक के दरबार में उतà¥à¤¸à¤µ शà¥à¤°à¥‚ हो गया, मिठाइयां बांटी गईं, ढोल नगाड़े बजाठगà¤à¥¤ बजने लगा। ऋषि ने यह शà¥à¤ संदेश अयोधà¥à¤¯à¤¾ à¤à¥‡à¤œà¤¾à¥¤ अयोधà¥à¤¯à¤¾ में, राजा दशरथ ने समाचार सà¥à¤¨à¤•à¤°, पूरी अयोधà¥à¤¯à¤¾ को सजाने और लोगों को उपहार वितरित करने का आदेश दिया। पूरी अयोधà¥à¤¯à¤¾ अपने राजकà¥à¤®à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ के विवाह का जशà¥à¤¨ मनाने लगी। राजा दशरथ अपने पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ की बारात की तैयारी करने लगे। कई हजार हाथियों को सजाया गया, सैकड़ों रथ बनाठगà¤à¥¤ शोà¤à¤¾à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¾ में समूची अयोधà¥à¤¯à¤¾ नगरी मिथिलापà¥à¤° पहà¥à¤‚ची। मिथिलापà¥à¤° नरेश जनक की बारात की तैयारियों में कोई कमी नहीं आई। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने आगे बढ़कर बारात का सà¥à¤µà¤¾à¤—त किया, राजा दशरथ को गले से लगाया और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बहà¥à¤¤ समà¥à¤®à¤¾à¤¨ दिया। शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® के विवाह में अयोधà¥à¤¯à¤¾ के सà¤à¥€ लोग नाच-गा रहे थे। पूरे आरà¥à¤¯à¤µà¥à¤°à¤¤ में उतà¥à¤¸à¤µ का माहौल था। चारों à¤à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ की शादी धूमधाम से हà¥à¤ˆà¥¤ शà¥à¤°à¥€ रामचनà¥à¤¦à¥à¤° जी का विवाह माता सीता से, लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी का विवाह माता उरà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¾ से, à¤à¤°à¤¤ जी का विवाह माता मैंडी से तथा शतà¥à¤°à¥à¤§à¤¨ जी का विवाह माता शà¥à¤°à¥à¤¤à¤¿à¤•à¥€à¤°à¥à¤¤à¤¿ से हà¥à¤†à¥¤ विवाह के बाद राजा दशरथ सबके साथ वापस अयोधà¥à¤¯à¤¾ आ गà¤à¥¤ राजा अब सà¥à¤–पूरà¥à¤µà¤• शासन करने लगा। समय बीतता गया और राजा दशरथ अब बूढ़े होने लगे थे। वे रामचनà¥à¤¦à¥à¤° जी को राजकारà¥à¤¯ देकर सà¥à¤µà¤¯à¤‚ तपसà¥à¤¯à¤¾ करना चाहते थे। गà¥à¤°à¥ वशिषà¥à¤ के कहने पर शà¥à¤°à¥€ राम के राजà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• के लिठà¤à¤• शà¥à¤ दिन निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ किया गया। जब सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤œà¤¾ को यह समाचार मिला कि शà¥à¤°à¥€ राम उनके राजा बनने वाले हैं तो सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤œà¤¾ की खà¥à¤¶à¥€ का ठिकाना नहीं रहा। खूब खà¥à¤¶à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ मनाई जा रही थी। हर तरफ खà¥à¤¶à¥€ का माहौल था। सबके चेहरे पर हंसी बिखर गई, सब महल सजाने और राजà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• की तैयारियों में जà¥à¤Ÿ गà¤à¥¤ इन तमाम चेहरों में à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ चेहरा à¤à¥€ था जिस पर दà¥à¤– और बदले की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ साफ नजर आ रही थी। वह चेहरा कोई और नहीं बलà¥à¤•à¤¿ रानी कैकेयी की दासी मंथरा का था। मंथरा को शà¥à¤°à¥€ राम जी का राजा होना पसंद नहीं था, वह à¤à¤°à¤¤ जी को राजा के रूप में देखना चाहती थीं। वह उदास होकर रानी कैकेयी के पास चली गईं। महारानी कैकेयी शà¥à¤°à¥€ राम के राजà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• के निरà¥à¤£à¤¯ से बहà¥à¤¤ खà¥à¤¶ थीं और उतà¥à¤¸à¤µ की तैयारियों का जायजा ले रही थीं। मंथरा का लटका हà¥à¤† चेहरा देखकर पहले तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ आया लेकिन मंथरा ने बड़ी चतà¥à¤°à¤¾à¤ˆ से काम लिया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि मैं अपने लिठथोड़ा दà¥à¤–ी हूं, आपके पà¥à¤¤à¥à¤° राजकà¥à¤®à¤¾à¤° à¤à¤°à¤¤ की चिंता के लिठदà¥à¤–ी हूं। à¤à¤°à¤¤ का नाम सà¥à¤¨à¤•à¤° रानी ने कहा, चिंता की कà¥à¤¯à¤¾ बात है, साफ-साफ बोलो। मंथरा ने रानी कैके को à¤à¤•à¤¾à¤‚त में ले लिया और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कई अपरंपरागत चीजें सिखाईं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने चालाकी से कैकेय के मन में पà¥à¤¤à¥à¤° के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ आसकà¥à¤¤à¤¿ जगा दी और राजा दशरथ को विवाह से पहले किनà¥à¤¹à¥€à¤‚ दो मांगों को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करने की याद दिलाते हà¥à¤ à¤à¤°à¤¤ को राजी करने के लिठराजी कर लिया। राजा दशरथ और रानी कैकेयी के विवाह से पहले à¤à¤• यà¥à¤¦à¥à¤§ के दौरान कैकेयी ने राजा दशरथ की जान बचाई थी। राजकà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ कैकेयी सà¥à¤‚दर थी, राजा दशरथ ने उनसे विवाह करने का अनà¥à¤°à¥‹à¤§ किया, रानी कैकेयी ने दो वचन मांगे, राजा दशरथ मान गठऔर दोनों का विवाह हो गया। मंथरा की बात मानकर रानी ने अपना मà¥à¤– उदास कर लिया, केश खोल दिये और रोती हà¥à¤ˆ कोपà¤à¤µà¤¨ में सो गयी। यह बात राजा दशरथ तक पहà¥à¤‚ची, राजा तà¥à¤°à¤‚त रानी के महल पहà¥à¤‚चे। à¤à¤¸à¥€ दशा देखकर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बहà¥à¤¤ दà¥:ख हà¥à¤†à¥¤ वह कैकेयी से बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¥‡à¤® करता था उसने पूछा। "हे केक! उदास कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ हो, सब देखो तà¥à¤® कितने खà¥à¤¶ हो आखिर, बताओ तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤¯à¤¾ चाहिà¤à¥¤ मैं दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को खोजकर साड़ी लाऊंगा, तà¥à¤® दà¥à¤–ी मत हो, मà¥à¤à¥‡ बताओ कि तà¥à¤® कà¥à¤¯à¤¾ चाहते हो? रानी कैकेयी उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ राजा दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ विवाह से पहले दिठगठदो वचनों की याद दिलाई और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पहली मांग के रूप में शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® से 12 वरà¥à¤· का वनवास और दूसरी मांग में à¤à¤°à¤¤ को राजा बनाने की मांग की।रानी कैकेयी की मांग सà¥à¤¨à¤•à¤° राजा दशरथ का दिल बैठगया। वह दà¥:ख से वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤² होने लगा, किसी तरह अपने आप को संà¤à¤¾à¤²à¤¤à¥‡ हà¥à¤ उसने कैकेयी से कहा- हे कैकेयी, तà¥à¤® इतनी निरà¥à¤¦à¤¯à¥€ कैसे हो सकती हो? मैं उसके बिना à¤à¤• पल à¤à¥€ नहीं रह सकता ।राजा दशरथ ने कैकेयी को बहà¥à¤¤ मनाने की कोशिश की लेकिन कैकेयी अपनी मांग पर अड़ी रही। 'रघà¥à¤•à¥à¤² की रीत सदा चली, पर शबà¥à¤¦ न जाय'। शà¥à¤°à¥€ राम ने कà¤à¥€ कà¥à¤² की मरà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ का उलà¥à¤²à¤‚घन नहीं किया, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपने पिता के वचन का पता चल गया। इसके साथ ही माता कैकेयी की दो मांगें à¤à¥€ बताई गईं। उसने शीघà¥à¤° ही निशà¥à¤šà¤¯ कर लिया कि उसके कारण उसके पिता का वचन नहीं टूट सकता और उसने वन जाने का निशà¥à¤šà¤¯ किया। शà¥à¤°à¥€ राम अपने महल में माता कैकेयी के पास गठऔर हाथ जोड़कर विनती की। हे माता! आप बिलà¥à¤•à¥à¤² दà¥à¤–ी न हों, मैं शीघà¥à¤° ही वनवास को पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ करूंगा। यदि मेरा अनà¥à¤œ à¤à¤°à¤¤ राजा हà¥à¤† तो मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ होगी, तà¥à¤® अपना शोक तà¥à¤¯à¤¾à¤— दो। यह कहकर शà¥à¤°à¥€ रामचंदà¥à¤° माता सीता और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी सहित 12 वरà¥à¤· के वनवास पर चले गà¤à¥¤ राम के विरह में राजा दशरथ फूट-फूट कर रो रहे थे। उनका मन बहà¥à¤¤ उदास हो गया। राजा दशरथ के साथ पूरी अयोधà¥à¤¯à¤¾ नगरी में मातम छा गया। अपने पà¥à¤°à¤¿à¤¯ राजकà¥à¤®à¤¾à¤° और उसकी पतà¥à¤¨à¥€ के वनवास की बात सà¥à¤¨à¤•à¤° पà¥à¤°à¤œà¤¾ à¤à¥€ रोने लगी, मानो सारी अयोधà¥à¤¯à¤¾ पर विपदा आ पड़ी हो, पकà¥à¤·à¥€ चहचहाने लगे हों और फूल खिलना बंद हो गठहों। अयोधà¥à¤¯à¤¾ के लोग à¤à¥€ वनवास के बाद जाने लगे, पà¥à¤°à¤¿à¤¯ राजकà¥à¤®à¤¾à¤°, शà¥à¤°à¥€ राम ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बहà¥à¤¤ समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ लेकिन किसी ने नहीं सà¥à¤¨à¤¾, तब राम ने सबको अकेला छोड़कर लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ और सीता के साथ सरयू नदी पार की, à¤à¤°à¤¤ जी अयोधà¥à¤¯à¤¾ में नहीं थे जब वे जंगल में गया था, वह अपने नाना के घर गया हà¥à¤† था। इधर दशरथ महाराज की हालत बिगड़ती जा रही थी, बेटे के मोह में रो-रो कर उनके पà¥à¤°à¤¾à¤£ उखड़ गà¤à¥¤ जब राजा दशरथ की मृतà¥à¤¯à¥ हà¥à¤ˆ तो उनके साथ कोई पà¥à¤¤à¥à¤° नहीं था। बाद में शà¥à¤°à¤µà¤£ कà¥à¤®à¤¾à¤° के माता-पिता दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ राजा दशरथ को दिया गया शà¥à¤°à¤¾à¤ª फलीà¤à¥‚त हà¥à¤†à¥¤ रामचंदà¥à¤° जी के जाने के बाद नाना के घर से à¤à¤°à¤¤ जी को बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ गया। तब तक वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• विधि से राजा दशरथ के शरीर को किसी तेल में सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ रख दिया गया। à¤à¤°à¤¤ जी अयोधà¥à¤¯à¤¾ लौट आà¤à¥¤ जब उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सारा किसà¥à¤¸à¤¾ पता चला तो वे बहà¥à¤¤ दà¥à¤–ी हà¥à¤ और अपनी माता कैकेयी को à¤à¥€ बहà¥à¤¤ बà¥à¤°à¤¾-à¤à¤²à¤¾ कहा। राजा दशरथ की मृतà¥à¤¯à¥ के बाद उनकी माà¤à¤— पर रानी को à¤à¥€ बहà¥à¤¤ पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¤¾à¤ª हà¥à¤†à¥¤ à¤à¤°à¤¤ जी ने शीघà¥à¤° ही अपने पिता दशरथ का विधिवत दाह संसà¥à¤•à¤¾à¤° किया। इसके बाद à¤à¤°à¤¤ जी रामचंदà¥à¤° जी को वापस लाने के लिठवन में चले गà¤à¥¤ à¤à¤°à¤¤ जी अयोधà¥à¤¯à¤¾ की सेना को à¤à¥€ अपने साथ वन ले गठथे, जिससे लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी के मन में शंका उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ˆ कि वे à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ शà¥à¤°à¥€ से यà¥à¤¦à¥à¤§ करने आ रहे हैं, ताकि वे शà¥à¤°à¥€ राम का वध कर अयोधà¥à¤¯à¤¾ का राजà¥à¤¯ सदा के लिठले लें, और बने रहें जीवन के लिठराजा। लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी अपना धनà¥à¤· बाण लेकर à¤à¤¾à¤°à¤¤ से यà¥à¤¦à¥à¤§ करने की तैयारी करने लगे और शà¥à¤°à¥€ राम से à¤à¥€ तैयारी करने को कहने लगे। लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी बहà¥à¤¤ कà¥à¤°à¥‹à¤§à¤¿à¤¤ हà¥à¤, वे à¤à¤°à¤¤ को मारने का पà¥à¤°à¤£ लेने जा रहे थे, तà¤à¥€ शà¥à¤°à¥€ राम ने लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी को समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ और कहा कि à¤à¤°à¤¤ à¤à¤¸à¤¾ नहीं है, यदि मैं अà¤à¥€ इशारा कर दूं तो वह तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ पूरा राजà¥à¤¯ दे सकते हैं। फिर उसने अपना वादा टाल दिया। शà¥à¤°à¥€ राम सही थे, à¤à¤°à¤¤ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ यà¥à¤¦à¥à¤§ न करने के लिठवापस बà¥à¤²à¤¾à¤¨à¥‡ आठथे, लेकिन शà¥à¤°à¥€ राम ने वापस जाने से मना कर दिया। à¤à¤°à¤¤ जी के बहà¥à¤¤ आगà¥à¤°à¤¹ करने पर à¤à¥€ राम जी नहीं माने। अंत में à¤à¤°à¤¤ अपनी चरण पादà¥à¤•à¤¾à¤“ं के साथ वापस अयोधà¥à¤¯à¤¾ आ गठऔर इन पादà¥à¤•à¤¾à¤“ं को सिंहासन पर बिठाकर राजà¥à¤¯ चलाने लगे। कà¥à¤› समय बाद शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ और सीता सहित दंडकारणà¥à¤¯ नामक वन में पहà¥à¤‚चे। वहाठमहापराकà¥à¤°à¤®à¥€ रावण शूरà¥à¤ªà¤£à¤–ा शà¥à¤°à¥€ राम के रूप पर मोहित हो गई। वह शà¥à¤°à¥€ राम से विवाह करना चाहती थी। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® के सामने उनके विवाह का पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤µ रखा। शà¥à¤°à¥€ राम बोले- 'मेरा विवाह हो गया है, देखो मेरा छोटा à¤à¤¾à¤ˆ लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ है, वह à¤à¥€ अति सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° है, तà¥à¤® उसके पास कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं जाते। à¤à¤¸à¤¾ कहकर शà¥à¤°à¥€ राम ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी के पास à¤à¥‡à¤œ दिया। वह लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी के पास गई। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सरà¥à¤ªà¤¨à¤–ा पर बहà¥à¤¤ गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ आया, विवाह करना तो दूर लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी ने उनकी नाक काट दी। उसका चेहरा बहà¥à¤¤ कà¥à¤°à¥‚प हो गया। उसकी पूरी नाक कटी हà¥à¤ˆ थी। बड़ी हिमà¥à¤®à¤¤ करके वह अपने à¤à¤¾à¤ˆ के पास गई और सारी बात कह सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆà¥¤ शूरà¥à¤ªà¤£à¤–ा ने सीता के सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ का वरà¥à¤£à¤¨ करके रावण के हृदय में मोह जगा दिया। रावण बलपूरà¥à¤µà¤• सà¥à¤‚दरी को पाने की तैयारी करने लगा। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने राम और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ के ठिकाने का पता लगाया। उसके पास मारीच नाम का à¤à¤• पालतू हिरण था। जो अनà¥à¤¯ मृगों से अधिक सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° था, उस मृग को अपने आशà¥à¤°à¤® के पास छोड़ आया। वह मृग शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® के आशà¥à¤°à¤® में इधर-उधर घूमने लगा। सोने के रंग के मृग को देखकर सीता जी मोहित हो गईं और शà¥à¤°à¥€ राम से उस सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मृग को पकड़ने का आगà¥à¤°à¤¹ करने लगीं। रामजी माता सीता को मना नहीं कर सके। शà¥à¤°à¥€ राम ने माता सीता को à¤à¥‹à¤ªà¤¡à¤¼à¥€ के अंदर रहने और सतरà¥à¤• रहने को कहा और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ के साथ हिरण का पीछा किया और उसकी खोज में निकल पड़े। अंत में कà¥à¤à¤µà¤° मास के दशहरा के दिन शà¥à¤°à¥€ रामचनà¥à¤¦à¥à¤°à¤œà¥€ ने रावण का वध किया, सीताजी लौट आयीं। सीता से मिलकर शà¥à¤°à¥€ राम अतà¥à¤¯à¤‚त पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤, उनके साथ-साथ पूरी सेना उतà¥à¤¸à¤µ मनाने लगी। अब चौदह वरà¥à¤· समापà¥à¤¤ होने को थे। रामचंदà¥à¤° जी ने लंका का राजà¥à¤¯ विà¤à¥€à¤·à¤£ को दे दिया, इसके बाद वे अयोधà¥à¤¯à¤¾ लौट आà¤à¥¤ उनके साथ हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी, सà¥à¤—à¥à¤°à¥€à¤µ जी आदि à¤à¥€ आठथे। आज à¤à¥€ यह दिन को दीपावली परà¥à¤µ के रूप में मनाया जाता है। अब à¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® का राजà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• पूरे धूमधाम से हà¥à¤†à¥¤ à¤à¤• बार फिर से पूरे à¤à¤¾à¤°à¤¤ में शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® के राजà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• की तैयारियां जोरों पर होने लगीं। हर कोई अपने चहेते राजकà¥à¤®à¤¾à¤° को जलà¥à¤¦ ही राजा बनते देखना चाहता था। वह अपने अधूरे सपने को पूरा करना चाहते थे। आखिर वह शà¥à¤ घड़ी आ ही गई और शà¥à¤°à¥€ राम का à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• राजà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• हà¥à¤†, शà¥à¤°à¥€ राम माता सीता के साथ सिंहासन पर विराजमान हà¥à¤ और बड़ी कà¥à¤¶à¤²à¤¤à¤¾ से अपना धरà¥à¤® निà¤à¤¾à¤¤à¥‡ हà¥à¤ पà¥à¤°à¤œà¤¾ की सेवा करने लगे। उनके राजà¥à¤¯ में मनà¥à¤·à¥à¤¯ ही मनà¥à¤·à¥à¤¯ है, सà¤à¥€ जीव-जंतà¥, पशà¥-पकà¥à¤·à¥€, पेड़-पौधे सà¤à¥€ आनंदित थे। सब सà¥à¤– से रहते थे। राम चरित मानस में तà¥à¤²à¤¸à¥€ दास महाराज जी राम राजà¥à¤¯ का वरà¥à¤£à¤¨ करते हà¥à¤ कहते हैं कि राम राजà¥à¤¯ में सूरà¥à¤¯ उतनी ही गरà¥à¤®à¥€ देता था जितनी शरीर सहन कर सकता था, वरà¥à¤·à¤¾ केवल उतनी ही होती थी जितनी फसल और पशॠसहन कर सकता है। पेड़ फलों से लदे थे। तरह-तरह के फूल तरह-तरह की सà¥à¤—ंध बिखेर रहे थे। à¤à¤• दिन शà¥à¤°à¥€ राम ने अपनी पà¥à¤°à¤œà¤¾ के हित को बारीकी से समà¤à¤¨à¥‡ के लिठजनता के बीच जाने का निशà¥à¤šà¤¯ किया। कोई उसे पहचान न पाठइसलिठउसने अपना à¤à¥‡à¤· बदल लिया। शà¥à¤°à¥€ राम नगर में घूमते हà¥à¤ à¤à¤• पेड़ के नीचे जहां पहले से कà¥à¤› लोग मौजूद थे, उनके पास रà¥à¤• गà¤à¥¤ वहाठà¤à¤• धोबी की बातों से शà¥à¤°à¥€ राम बहà¥à¤¤ दà¥à¤–ी हà¥à¤ और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ फिर से कठोर निरà¥à¤£à¤¯ लेने पर विवश कर दिया। उस धोबी ने माता सीता से पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ किया, जिससे शà¥à¤°à¥€ राम दà¥à¤–ी हो गà¤à¥¤ वह वापस महल में आया और अपनी पà¥à¤°à¤œà¤¾ की संतà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ के लिठमाता सीता को वालà¥à¤®à¥€à¤•à¤¿ के आशà¥à¤°à¤® à¤à¥‡à¤œà¤¨à¥‡ का कठोर निरà¥à¤£à¤¯ लिया। लोक लाज के कारण माता सीता जी को वालà¥à¤®à¥€à¤•à¤¿ आशà¥à¤°à¤® में रहना पड़ा। इसी आशà¥à¤°à¤® में माता सीता ने दो तेजसà¥à¤µà¥€ पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को जनà¥à¤® दिया, जिनके नाम लव और कà¥à¤¶ थे। ये दोनों ही महरà¥à¤·à¤¿ वालà¥à¤®à¥€à¤•à¤¿ के शिषà¥à¤¯ थे और वेदों के जà¥à¤žà¤¾à¤¨ और यà¥à¤¦à¥à¤§ में पारंगत और वीर बन गठथे। रामचंदà¥à¤° ने अशà¥à¤µà¤®à¥‡à¤§ यजà¥à¤ž किया। इस समय पà¥à¤°à¤œà¤¾ की माà¤à¤— पर सीताजी को बार-बार बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ गया, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अगà¥à¤¨à¤¿ परीकà¥à¤·à¤¾ देने के लिठकहा गया, इससे माता सीता फिर बहà¥à¤¤ दà¥à¤–ी हà¥à¤ˆà¤‚ और अपनी पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ की शपथ लेकर मन ही मन à¤à¤—वान से याचना कीं धरती फटने और à¤à¥‚कमà¥à¤ª आने की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि धरती फट जाने से माता सीता परम पवितà¥à¤° सिदà¥à¤§ हो गईं और माता सीता हमेशा-हमेशा के लिठधरती में समा गईं। पà¥à¤°à¤à¥ शà¥à¤°à¥€ राम बहà¥à¤¤ दà¥à¤–ी हà¥à¤, वे हमेशा के लिठअकेले हो गà¤, कà¥à¤› समय बाद शà¥à¤°à¥€ राम ने à¤à¥€ सरयू में अपना शरीर तà¥à¤¯à¤¾à¤— दिया और जल समाधि ले ली। लव और कà¥à¤¶ बहà¥à¤¤ वीर थे, बाद में वे राजा बने और शासन करने लगे।
0 Comments
0 Shares
380 Views